शिखा कौशिक/
अगस्त 2017 की गोरखपुर की वो दर्दनाक घटना तो याद ही होगी जब पचास के करीब बच्चे ऑक्सीजन की कमी से मर गए थे. राज्य सरकार ने उस मामले पर लीपापोती कर पल्ला झाड़ लिया. ठीक उसी तरह अगस्त 2016 में उड़ीसा के रहने वाले दाना मांझी की तस्वीर वायरल हुई थी जिसमें वह साइकिल से अपने पत्नी की लाश दसियों किलोमीटर ले गए, तब, जब पूरा एक सरकारी कार्यक्रम है जो शव को ढोने के लिए बना है.
यह सब कोई यदा कदा होने वाली घटनाएं नहीं हैं. सबको मालूम है कि भारत में स्वास्थय सुविधाओं की स्थिति काफी खराब है. आंकड़ों में देखें. वैसे तो भारत दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश है और विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी है. पर यहाँ स्वास्थ्य सेवाओं पर गरीब देशों से भी कम खर्च किया जाता है. वर्ष 2011-12 में, साढ़े पांच करोड़ लोग बीमारी के इलाज पर खर्च करने की वजह से गरीबी रेखा से नीचे चले गए थे. देश की 51 प्रतिशत जनता निजी क्षेत्र में इलाज कराना पसंद करती है. इसकी वजह यह है कि सार्वजनिक-स्वास्थ्य व्यवस्था काफी जर्जर है.
हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि लोग निजी क्षेत्र में अधिक पैसा खर्च कर रहे हैं तो उन्हें बेहतर गुणवत्ता वाली सेवाएँ मिल रहीं हैं. देश में अब भी 16 लाख के करीब लोग स्वास्थ्य सेवा में गुणवत्ता की कमी से जान गंवा देते हैं. वर्ष 2018 में आये वैश्विक स्वास्थ्य गुणवत्ता के मामले में भारत की रैंकिंग कुल 195 में देशों में से 145 रही.
राज्य सरकार ने इस दिशा में प्रयास शुरू भी कर दिए हैं. इस सन्दर्भ में पहली बैठक 13 मार्च को हुई और स्वास्थ्य सुविधाओं पर काम करने वाले अनेक विशेषज्ञों ने संभावित स्वास्थ्य का अधिकार कानून की रुपरेखा पर बातचीत की
गोरखपुर और दाना मांझी जैसी घटनाएं होती रहती हैं और लोग विवश होकर सरकारी लीपापोती को देखकर भूल जाने के लिए अभिशप्त होते हैं. लेकिन क्या आपको लगता है कि अगर मरे बच्चों के माता-पिता और दाना मांझी के पास सरकार को न्यायालय में घसीटने का अधिकार रहता तो सरकार ऐसे ही लीपापोती करती? शायद नहीं!
अब ऐसा ही होने जा रहा है. खासकर राजस्थान और छत्तीसगढ़ में, जहां की सरकारें अपने नागरिकों को स्वास्थ्य का अधिकार देने की तैयारी कर रहीं हैं. छत्तीसगढ़ में तो अभी बातचीत चल रही है जबकि राजस्थान में इसको लेकर तैयारी भी शुरू हो चुकी है.
दिसंबर 2018 में हुए राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने लोगों को स्वास्थ्य सुविधाओं का अधिकार देने का वादा किया। इसमें नि: शुल्क निदान, उपचार और दवाओं सहित स्वास्थ्य सेवा शामिल थी. सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मार्च 2019 में उस वादे को दोहराया और कहा कि उनका राज्य जल्द ही इस तरह का कानून लाएगा.
राज्य सरकार ने इस दिशा में प्रयास शुरू भी कर दिए हैं. इस सन्दर्भ में पहली बैठक 13 मार्च को हुई और स्वास्थ्य सुविधाओं पर काम करने वाले अनेक विशेषज्ञों ने संभावित स्वास्थ्य का अधिकार कानून की रुपरेखा पर बातचीत की. इसमें यूनिसेफ, जन स्वास्थय अभियान, प्रयास जैसे समाजसेवी संगठन और संस्थाओं ने भाग लिया तो वहीँ सरकार की तरफ से राष्ट्रीय स्वास्थय मिशन के प्रमुख डॉ समित शर्मा, अतिरिक्त मुख्य सचिव (स्वास्थ्य) रोहित कुमार सिंह भी शामिल हुए.
कहा जा रहा है कि जल्द ही सरकार संपूर्ण मसौदा लोगों के बीच में लाने वाली है ताकि लोग इस ड्राफ्ट पर अपनी राय दे सकें.
अगर राजस्थान ऐसा करने में सफल होता है तो यह न केवल राज्य बल्कि पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण कदम होगा. अन्य राज्यों पर भी ऐसे कानून लाने का दबाव बनेगा.