शिखा कौशिक/
भारत-पाकिस्तान में दुल्हन ज़्यादातर लहंगा चुनरी जैसा ही कुछ पहनती हैं. अगर खर्च वहन कर पायें तो इन दोनों देशों में शादी के समय सामान्यतः यही पसंद किया जाता है. कुछेक अंतर के साथ. खासकर पकिस्तान की दुल्हन को ध्यान में रखते हुए एक फैशन डिज़ाइनर को शो करना था जहां मॉडल उसके द्वारा डिजाईन की हुई ड्रेस को पहन कर रैंप पर चलने वाली थी. उस डिज़ाइनर ने इस मंच का ऐसा बेहतरीन इस्तेमाल किया कि देखने वाले दंग रह गए.
हुआ यह कि पकिस्तान के पैंटीन ब्राइडल कटोर वीक (Pantene Bridal Couture Week) के सालाना जलसे में वहाँ के मशहूर फैशन डिज़ाइनर अली ज़ीशान का शो था. लोग बड़ी उम्मीद के साथ आने वाले नज़ारे के इंतज़ार में थे और ऐसा हो भी रहा था कि अचानक से स्कूल ड्रेस में एक लड़की निकली. उसकी बांकि की सारी तैयारियां दुल्हन वाली की थी, जैसे मेहँदी, गहने इत्यादि. पर वह स्कूल ड्रेस में थी और स्कूल बैग भी साथ लिए हुए थी.
जैसे आप पढ़कर हैरान हो रहे हैं वैसे ही वहाँ मौजूद दर्शक भी हैरान हो गए. लेकिन यह गलती से नहीं हुआ था बल्कि ज़ीशान की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा था. ज़ीशान चाहते थे कि उनका मुल्क वहाँ हो रहे बड़ी संख्या में बाल-विवाह जैसी कुप्रथा को समझे. हुआ भी ऐसा ही. पाकिस्तान ही नहीं बल्कि दुनिया में इस बात का संज्ञान लिया गया. इसके लिए ज़ीशान ने सयुंक्त राष्ट्र को भी अपने साथ जोड़ा था.
कई सजी-धजी दुल्हन के ड्रेस में मॉडल के बीच स्कूल बैग और ड्रेस के साथ एक लड़की का रैम्प पर आना कईयों को झकझोर गया और यह तस्वीर सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर खूब शेयर की गयी.
ज़ीशान का ऐसे मंच का सामजिक उद्देश्य के लिए इस्तेमाल करना कोई नई बात नहीं है. पिछले साल इन्होंने अपने देश पाकिस्तान में जबरन हो रही शादियों का मुद्दा उठाया था. इस बार उन्होंने बाल विवाह का मुद्दा इसलिए उठाया क्योंकि तमाम नीतियों और संस्थाओं के सक्रिय होने के बाद भी उनके मुल्क में यह मुद्दा सुलझता नहीं दिख रहा है.
सयुंक्त राष्ट्र के अधिकृत बयान के अनुसार पाकिस्तान में बाल विवाह को रोकने के लिए एक कानून है जिसका नाम है चाईल्ड मैरेज रेस्ट्रिक्ट एक्ट (सीएमआए).इसके तहत लड़कियों के लिए शादी की उम्र कम से कम 16 साल होनी चाहिए वहीँ लड़कों के लिए यह उम्र 18 साल निर्धारित की गयी है. लेकिन सयुंक्त राष्ट्र का मानना है कि यहाँ 20 प्रतिशत लड़कियों की शादी तय सीमा से कम उम्र में ही हो जाती है. कुछ (तीन प्रतिशत) लड़कियों ने तो अपने जीवन के पंद्रह बसंत भी नहीं देखे होते जब उनके हाथ में कॉपी कलम के बदले घर गृहस्थी संभालने की जिम्मेदारी दे दी जाती है.
ज़ीशान का ऐसे मंच का सामजिक उद्देश्य के लिए इस्तेमाल करना कोई नई बात नहीं है. पिछले साल इन्होंने अपने देश पाकिस्तान में जबरन हो रही शादियों का मुद्दा उठाया था.
बाल विवाह सिर्फ पाकिस्तान की समस्या नहीं है. भारत और दुनिया भर के लगभग सभी देश कमोबेश इस समस्या से जूझ रहे हैं. भारत की स्थिति बाल विवाह में काफी ख़राब है. पिछले साल आये राष्ट्रीय परिवार स्वास्थय सर्वेक्षण के आकड़ों बताते हैं कि 15 से 19 साल के बीच की ऐसी लडकियां जो या तो एक-दो बच्चों की माँ हो या गर्भवती हो, उनकी संख्या कम से कम 10प्रतिशत है. ऐसी लड़कियों की संख्या कुछ राज्य जैसे पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में बहुत अधिक है. इन राज्यों में 18 प्रतिशत लड़कियां ऐसी हैं. देश के आंकड़े देखें तो ऐसे महिलाओं की संख्या जो खुद के खेलने की उम्र में अपने बच्चे संभाल रहीं थीं, वो करीब 8 प्रतिशत हैं. गाँव में इनका प्रतिशत 10 के करीब है तो शहरों में पांच के करीब.
हाल ही में करीब दो महीने पहले यानि अक्टूबर महीने में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक फैसला देकर किसी भी पुरुष का अपनी 18 वर्ष या उससे कम उम्र की पत्नी के साथ यौन सम्बन्धबनाने को बलात्कार करार दिया.