उमंग कुमार /
एक रुपये के नोट से भारत में हर किसी की किसी न किसी वजह से अपनी यादें जुड़ी होंगी. वही एक रुपये का नोट जिसने अब सौ साल पूरे कर लिए हैं. लेकिन एक रुपये के नोट का यह लम्बा सफ़र बड़ा ही रोचक रहा है.
भारत में इस एक रुपये के नोट की शुरुआत एक सदी पहले यानि 1917 में हुई थी लेकिंग तब इस नोट की छपाई भारत में न होकर इंग्लैण्ड में हुआ करती थी. इंग्लैण्ड में इस नोट की छपाई 30 नवम्बर को ही शुरू हुई थी जिसमें चांदी के बर्क के साथ जॉर्ज पंचम की तस्वीर उकेरी हुई होती थी.

इस नोट के एक सदी की यात्रा यहीं से शुरू हुई. फिर भारत सरकार ने आजादी मिलने के दो साल बाद इसे भारत में छापने का फैसला लिया. वर्ष 1949 से यह नोट भारत में छपने लगा जिसपर जॉर्ज पंचम की तस्वीर हटा कर सारनाथ के सिंहस्तम्भ की तस्वीर लगा दी गयी. बाकी नोट का डिजाईन कमोबेश पहले जैसा ही रहा.
इस नोट से जुड़ा एक और मजेदार तथ्य यह है कि यह नोट अरब देशों में भी चल जाता था. जहां ये नोट चलन में थे उनमें दुबई, बहरीन, मस्केट और ओमान इत्यादि देश शामिल हैं. ऐसा वर्ष 1970 तक चला. कहते हैं कि पुर्तगाल और फ़्रांस की सरकारों ने इस एक रुपये के नोट से प्रभावित होकर अपने देश में भी इसका चलन माने वहाँ की करेंसी में एक का नोट शुरू कर दिया.
सन् 1994 में एक रूपये के एक नोट को छापने की कीमत 1.48 रूपए आने लगी थी. अतः सरकार ने इसकी छपाई रोक दी
इस नोट की यात्रा में कुछ समस्याएं भी आईं. जैसे सन् 1994 में इस नोट की छपाई बंद हो गयी. वजह थी इसकी छपाई की कीमत, जो कि इसके वास्तविक कीमत से ज्यादा हो चुकी थी. उस समय तक एक रूपये के एक नोट को छापने की कीमत 1.48 रूपए आने लगी था. अतः सरकार ने इसकी छपाई रोक दी.
पुनः जब इसकी छपाई शुरू हुई तो एक नोट के छपाई की कीमत 1.14 रुपये पड़ रही थी. वर्तमान में इस एक रुपये के छपाई की कीमत 78.5 पैसे आती है. यह बेहतर और सुलभ तकनिकी की वजह से संभव हो पाया है.
इस नोट के बारे में जो सबसे अहम् जानकारी है वह यह कि इसपर मालिकाना हक़ भारतीय रिज़र्व बैंक का नहीं होता है. बल्कि देश या कहें गणतंत्र भारत का होता है. इसके पीछे वजह यह है कि इस नोट पर हस्ताक्षर रिज़र्व बैंक के गवर्नर का न होकर वित्त सचिव का होता है.