उमंग कुमार/
गाँव घर में महिलाओं को दिन भर काम करते तो देखा ही होगा. इतना काम, जिसका कोई हिसाब नहीं है. लेकिन हाल ही में एक संस्था ने हिसाब कर बताया है कि अगर दुनिया भर की महिलाओं के इस तरह के काम जिसका कोई हिसाब नहीं है, को मिला दिया जाए तो इसकी कीमत लगभग 10 ट्रिलियन डॉलर के बराबर होगी. जी हाँ दस ट्रिलियन मतलब 71,26,85,00,00,00,000 रूपया. इसको हिंदी में आप इकहत्तर नील या इकहत्तर नील या इकहत्तर लाख करोड़ रूपया कह सकते हैं. आपको जानकार हैरानी होगी कि यह दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी एप्पल के सालाना टर्नओवर के 43 गुना है.
इसका आकलन एक अंतर्राष्ट्रीय एनजीओ ऑक्सफेम ने किया है. इस आंकलन के अनुसार भारत में महिलाओं के घर चलाने और बच्चा पालने के कुल प्रयास की कीमत लगाई जाए तो यह देश के जीडीपी का 3.1 प्रतिशत होगा. ऐसे काम जिसे अंग्रेजी में अनपेड वर्क कहा जाता है उसपर शहर में रहने वाली महिलायें 312 मिनट और गाँव में रहनी वाली महिलायें 291 मिनट खर्च करती हैं. इनकी तुलना में शहरी पुरुष महज 29 मिनट तो एक ग्रामीण पुरुष 32 मिनट ही अनपेड वर्क पर खर्च करता है.
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में महिला पुरुष के बीच बहुत बड़ी खाई है. यहाँ असमानता का स्तर इतना बड़ा है कि महिलाओं को समान काम करने पर भी कम पैसा मिलता है.
इस रिपोर्ट में भारत के महिला पुरुष के बीच बढती असामनता पर भी चिंता जाहिर की गई है. साल 2018 में भारत को ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स में 108 स्थान मिला है वहीँ 2006 में यह 98 स्तर पर था. भारत के मुकाबले चीन और बांग्लादेश की स्थिति काफी बेहतर है.
ऑक्सफेम रिपोर्ट का यह भी कहना है कि भारत में महिलाओं के हित को ध्यान में रखते हुए कई कानून बनाए गए हैं पर इनका सही से पालन नहीं होता. इसकी सबसे बड़ी वजह देश का पितृसत्तात्मक समाज है.
इस रिपोर्ट में बिहार, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश के हज़ार घरों पर किये गए एक सर्वेक्षण का हवाला दिया गया है जिससे भारतीय समाज की सही तस्वीर दिखती है. इस सर्वे में भाग लेने वाले 53 प्रतिशत लोगों का मानना था कि अगर महिला बच्चों का ध्यान नहीं रख पाती है तो उसे बुरी तरह डांटा जा सकता है. बल्कि 33 प्रतिशत ने तो यह भी माना कि ऐसी स्थिति में महिलाओं को पीटना भी जायज है. यह तब है जब देश में घरेलु हिंसा के नाम पर कई सालों से कानून मौजूद हैं.