उमंग कुमार/
हाल ही में नेपाल की संसद ने सर्वसम्मति से मासिक धर्म के समय महिलाओं और लड़कियों को घर से निकाले जाने को अपराध घोषित कर दिया. इस कुप्रथा में नेपाल के विभिन्न समुदायों में महिलाऐं मासिक धर्म के समय में घर में प्रवेश नहीं कर सकती थीं क्योंकि उन्हें इस दरम्यान अपवित्र माना जाता है. इस तरह अपने मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को घर के बाहर बने एक झोपड़े में रहना होता है. इस प्रथा को स्थानीय स्तर पर छौपदी कहते हैं. नेपाल में बने नए कानून के मुताबिक महिलाओं को जबरदस्ती छौपदी के रिवाज को पालन करवाने वालों को तीन महीने कारावास या 3,000 रुपये (स्थानीय) का जुर्माना हो सकता है. यह कानून अगले साल तक अमल में आ जायेगा.
ऐसी प्रथाएं भारत में भी विभिन्न क्षेत्रों में पायी जाती हैं. छौपदी की ही तर्ज पर महाराष्ट्र के कुछ इलाकों में गौकोर पाया जाता है. यह वही जगह है जहाँ अपने मासिक धर्म के समय में महिलायें रहने चली जाती हैं. वहाँ यह प्रथा है कि महिलाओं को जंगल के नजदीक बने इस गौकोर में रहना होता है. कभी अकेले और किस्मत अच्छी रही तो कोई दूसरी महिला भी आ जाती है.

अंग्रेजी अखबार दी गार्डियन में छपे एक रिपोर्ट के अनुसार इन गौकोर की स्थिति अच्छी नहीं होती. चूँकि यह सार्वजनिक स्थान होता है इसलिए इसके साफ़ सफाई की जिम्मेदारी कोई नहीं लेता.रसोईघर तो वैसे भी नहीं होना है क्योंकि महिलाओं को इस दौरान इससे दूर ही रहना होता है. इस गौकोर में महिलायें चटाई पर सोती हैं, जिसके अनेको खतरे हैं. जंगल के करीब होने से जानवर, कीड़े-मकोड़े का खतरा हमेशा बना रहता है.
एक स्वयं सेवी संस्था स्पर्श ने इस पर एक अध्ययन किया और पाया कि अधिकतर गौकोर की स्थिति बुरी रहती है. ये संस्था 223 गौकोर का निरिक्षण करने गई जिसमे से 98 प्रतिशत में एक अदद विस्तर नहीं था. बिजली और अन्य सुविधाओं की तो बात ही अलग है.
यह किसी एक समुदाय की बात नहीं है. एक अध्ययन के अनुसार प्रत्येक दस भारतीय लड़कियों में से आठ लड़कियों को मासिक धर्म के दौरान धार्मिक स्थानों पर जाने की अनुमति नहीं होती. प्रत्येक दस में से छः लड़कियों ने बताया कि मासिक धर्म के समय में उनको रसोईघर में खाने-पीने की चीज छूने की अनुमति नहीं होती. प्रत्येक दस में से तीन लड़कियों ने बताया है कि उनको इस दौरान किसी अलग कमरे में सोने को कहा जाता है.
यह अध्ययन टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंस ने किया था जिससे पता चलता है कि मासिक धर्म से जुड़ी भ्रांतियां भारतीय समाज में गहरे पैठीं है.
यूनिसेफ के द्वारा फण्ड किया गया वह अध्ययन ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित हुआ था. इस अध्ययन का उद्देश्य यह पता करना था कि मासिक धर्म के दौरान भारतीय लड़कियों को साफ़ सफाई सम्बंधित जरुरी चीजें कितनी उपलब्ध रहती हैं. इस अध्ययन में 97,070 लड़कियों का आंकड़ा इस्तेमाल किया गया है.

इन अध्ययनों का निष्कर्ष यही है कि जब महिलाओं को अत्यधिक साफ़-सफाई की जरुरत होती है तो उनको गंदे जगह पर भेज दिया जाता है. नेपाल के सन्दर्भ में देखा जाए तो हिंदू धर्म से जुड़ी छौपदी की परंपरा के पीछे धारणा यह है कि मासिक धर्म के दौरान और प्रसव के बाद महिलाएं अछूत होती हैं. और इस प्रकार से जब महिलाओं को ज़्यादा साफ़ सफाई और देखभाल की ज़रुरत होती है, उस समय उन्हें बाहर एक झोंपड़े जहाँ कोई व्यवस्था और साफ़- सफाई नहीं होती है, भेज दिया जाता है. भारत में सोच इससे बेहतर नहीं है.
नेपाल के सर्वोच्च न्यायलय द्वारा दशक पहले इस कुप्रथा पर प्रतिबन्ध लगाए जाने के बावजूद यह प्रथा अब भी वहाँ दूर दराज़ के इलाकों में चल रही है. इसको देखते हुए वहाँ के नीति निर्माताओं ने इसके खिलाफ कानून ही बना दिया.
क्या भारत अपने पड़ोसी मुल्क से इस मामले में कुछ सीख सकता है?