सौतुक डेस्क/
भारत में यह कहने वाले हजारों की तादाद में मिल जायेंगे कि स्त्री ईश्वर की सबसे सुन्दर रचना है. लेकिन, क्या देश की एक कामकाजी महिला का भी ऐसा ही मानना होगा. खासकर जो अपने मेंस्ट्रुअल साइकिल या कहें माहवारी की असहनीय पीड़ा से गुज़र रही हो और इस हालत में उसे ऑफिस जाना हो. और तो और वह अपने अमूमन पुरुष बॉस से यह बता भी नहीं पाए जब उससे उस दिन का काम पूरा करने को कहा जाए या कुछ अतिरिक्त काम दिया जाए. ऐसे में उस महिला का जवाब होगा कि ईश्वर की तो छोड़ो, उसके आस-पास का अपना समाज भी महिला के प्रति अपनी मामूली जिम्मेदारी नहीं निभा पाया. याद रहे कि यह माहवारी में दर्द, मूड स्विंग्स या डिप्रेशन जैसी समस्याएं कुछेक महिलाओं की नहीं बल्कि तीन-चौथाई से अधिक महिलाओं और युवतीयों की समस्या है. वर्ष 2012 में छपे एक अध्ययन में करीब 84 प्रतिशत महिलाओं ने बताया था कि उन्हें इस पीरियड के दौरान कभी न कभी दर्द होता है और 43 प्रतिशत ने तो बताया था कि उनको हर पीरियड में ऐसी तकलीफ बर्दाश्त करनी होती है.
लेकिन हालात बदलने के आसार दिखने लगे हैं. मुंबई स्थित डिजिटल मीडिया स्टार्टअप ‘कल्चर मशीन’ ने इस मुद्दे पर एक नया कदम उठाकर सबको चौंका दिया है. इस स्टार्टअप ने जुलाई महीने की शुरुआत से एक पॉलिसी लागू की है जिसके तहत इसके यहाँ काम करने वाली महिला कर्मचारियों को पीरियड के पहले दिन छुट्टी दी जायेगी.
भारत में यह एक नई पहल है, पर कई देश तो पहले ही इस दिशा में ज़रूरी कदम उठा चुके हैं. इन देशो ने महीने के इस शारीरिक चक्र और काम के बीच सामंजस्य स्थापित करने लिए यह पहल की है. मीडिया में छपे रिपोर्ट के अनुसार इस संस्था में करीब 75 महिला कर्मचारी हैं जो कि कुल संख्या का 35 प्रतिशत है.
बीते मार्च में इटली पश्चिमी देशो में पहला मुल्क बना जिसने आधिकारिक तौर पर “मेंसटुरल लीव” या कहें ‘माहवारी छुट्टी’ पर चर्चा शुरू की. मार्च 13 को इटली के संसद में चार महिला सांसदों ने इसके बाबत एक बिल पेश किया. अगर यह बिल पास हो गया तो कानूनन महिलाओ को इस दरम्यान तीन दिन की छुट्टी मिलेगी. ऐसे प्रावधान पहले से ही जापान, दक्षिण कोरिया, ताईवान और इंडोनेशिया जैसे देशों में मौजूद है. चीन के कुछ हिस्सों में भी ऐसा प्रावधान है.
इसके अतिरिक्त कुछ मल्टीनेशनल कंपनीयों ने भी अपने महिला कर्मचारियों का ध्यान रखते हुए इस तरह की छुट्टी का प्रावधान बना रखा है. जैसे खेल से सम्बंधित सामान बनाने वाली नाइक ने 2007 से ही ऐसी व्यवस्था बना रखी है. एक ब्रिटिश संगठन, कोएक्सिस्ट फाउंडेशन में भी इस तरह के छुट्टी का प्रावधान है. इनके अनुसार से इस तरह के छुट्टी निति से महिला कार्यबल को और अधिक उत्पादक बनाया जा सकता है.
इस विषय पर काम कर रहे विशेषज्ञों का मानना है कि माहवारी के साथ सबसे बड़ी समस्या है इसे जुड़ी शर्म और पारंपरिक नासमझी. ऐसे में महिलाएं जो तकलीफ से गुजर रही होती है पर अपने ऑफिस में यह कह तक नहीं पाती कि उन्हें कोई परेशानी है. अगर ऐसी छुट्टी का कोई प्रावधान बनता है तो इस गैर-जरुरी शर्म और नासमझी को हटाने में जरुरी सफलता मिलेगी.