शिखा कौशिक/
आप हैदराबाद स्थित इनके आवास पर जायेंगे तो गरीब महिलाओं का एक ऐसा हूजूम मिलेगा जो भरोसे वाले इलाज के लिए यहाँ पहुँचता हैं. डॉ एसवी कामेश्वरी को सांस लेने की फुर्सत भी नहीं मिलती है. ऐसे में आप अगर इनसे मिलने का समय मांगें और ये आपके लिए समय निकाल पायीं, तो पूरी बातचीत के दौरान आपको लगता रहेगा कि इनके सूखते गले को पानी की जरुरत है. आपके याद दिलाने पर हो सकता है कि ये एक बार पानी पी भी लें, लेकिन सामान्यतः आपको ही आश्वस्त करती रहती हैं कि सब ठीक हैं.
डॉ कामेश्वरी वही महिला हैं जिन्होंने आंध्र प्रदेश में 2008 से 2010 के बीच बड़े पैमाने पर महिलाओं के गर्भाशय निकालने के मामले का उजागर किया था. इस दो साल में सरकार के स्वास्थय बीमा योजना का फायदा उठाने के लिए निजी अस्पतालों ने 27,000 से अधिक महिलाओं का गर्भाशय निकाल दिया था.
डॉ कामेश्वरी और उनके पति डॉ सूर्य प्रकाश विन्जमुरी के इस अद्भूत कार्य से घबराई सरकार ने आनन-फानन में कदम उठाया और निजी अस्पतालों में बीमा के तहत शरीर के किसी अंग को निकाले जाने पर ही पाबंदी लगा दी.
“हमलोग एक अद्योद्यिक क्षेत्र में थे जब देखा कि लगभग 21-22 साल की सारी महिलाओं को रजोनिवृति या कहें मेनोपौस हो चुका था. ये महिलायें तरह तरह के स्वास्थय समस्याओं से जूझ रही थी. क्योंकि उनके शरीर को जो जरुरी हारमोंस चाहिए थे, गर्भाशय निकल जाने की वजह से ये हारमोंस बंद हो गए थे,” डॉ कामेश्वरी कहती हैं. इसे देखकर माथा ठनका और जब हमने पता किया तो पाया कि समस्या काफी बड़ी है. गाँव के गाँव इस समस्या से जूझ रहे थे. जिस महिला से पूछो उसी का गर्भाशय निकाला जा चुका था. खैर, इसके बाद ये डॉक्टर दम्पति इस समस्या की तह में गए और कई चौंकाने वाले तथ्यों को उजागर किया.
इस दो साल में सरकार के स्वास्थय बीमा योजना का फायदा उठाने के लिए निजी अस्पतालों ने सताईस हज़ार से अधिक महिलाओं का गर्भाशय निकाल लिया था
उन दिनों देश का पहला सरकारी स्वास्थ्य बीमा की शुरुआत हुई थी. आंध्र सरकार सरकार ने इसकी शुरुआत की थी. निजी अस्पताल महिलाओं के सामान्य समस्या का भी इलाज यही बताते थे कि अपना गर्भाशय निकलवा लो. डॉक्टर और निजी अस्पताल इन महिलाओं को समझाते थे कि एक बार गर्भाशय निकल जाए तो रोजमर्रा की होने वाली परेशानी से निजात मिल जायेगी. वो यह नहीं बताते कि इसके बाद दूसरी तरह की समस्याएँ झेलनी पड़ेंगी पड़ेगी. इन अस्पतालों का मकसद पैसा कमाना होता था ताकि बीमे से एक डेढ़ लाख रूपया बना लें. महिलाओं को भी लगता था कि बढ़िया है सरकार पैसा दे ही रही है तो इसका फायदा उठा ही लेते हैं.
मीडिया में बात आई. सरकार ने इन्हें बुलाया और इनके आंकड़े देखे और फिर फैसला किया कि अब निजी अस्पतालों को सरकारी बीमा के तहत ऐसा करने की इजाज़त नहीं दी जाएगी.
सरकार के रोक के बाद भी महिलाओं को डॉक्टर गर्भाशय निकलवाने का सुझाव देते रहे. बस अंतर यह आया कि अब महिलायें पैसा देकर इसे निकलवाने लगीं.
इस घटना को हुए सात-आठ साल से ऊपर हो गए लेकिन आज भी यह दम्पति महिलाओं के गर्भाशय बचाने की मुहिम में लगा हुआ है. और इसके लिए ये दोनों लोग सप्ताह में कई दिन तेलंगाना के यदाद्दरी-भुवनगिरी जिले के गाँव में गुजारते हैं. जहां ये लोग गाँव में महिलाओं से मिलते हैं और उन्हें समझाते हैं कि गर्भाशय जल्दी निकलवाने के क्या नुकसान हैं. तेलंगाना सरकार ने ‘सेव युटेरस’ नाम से अभियान चला रखा है जिसमें ये लोग भी शामिल हैं.
डॉ कामेश्वरी बताती हैं कि इंग्लैण्ड में प्रति एक लाख महिलाओं में 200 से भी कम महिलाओं का गर्भाशय निकालने की नौबत आती है. अमेरिका में यह अनुपात 540 है. जबकि भारत में एक लाख महिलाओं में 12,000 महिलाओं का गर्भाशय निकाला जाता है. आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के कई जिलों में तो यह अनुपात 18,000 तक है. इस समस्या को देखें और इस डॉक्टर दम्पति के लगन को तो आपको इन्हें सैल्यूट करने को जी करेगा.