उमंग कुमार/
अब लोकसभा चुनाव को एक महीने भी नहीं बचे हैं ऐसे में यह कहना मुश्किल है कि नरेंद्र मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बनकर आएंगे की नहीं। अगर नहीं आये तो 15 अगस्त 2018 लालकिले से दिया गया उनका आखिरी होगा। ऐसे में प्रधानमंत्री से उम्मीद की जानी चाहिये कि 2014 में देश के साथ किये गए वादे और उस पर अमल का ब्यौरा जरूर रखेंगे। देखने की बात होगी कि मोदी ऐसा कर पाते हैं कि नहीं! इन मुद्दों के बूते ही नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे थे. देखिये क्या हैं ये मुद्दे:
1- निर्भया कांड की वजह से उबलते माहौल को बखूबी इस्तेमाल करते हुए, 2014 के चुनावी माहौल में मोदी का बहुत अधिक जोर स्त्रियों की सुरक्षा पर था। याद होगा वह नारा। बहुत हुआ स्त्री पर वार, अबकि बार मोदी सरकार। आज अगर अखबारों को पलटा जाए तो स्थिति के बद से बदतर होते जाने का पता चलेगा। कठुआ रेप केस हो या उन्नाव केस। इसमें पीड़ित के खिलाफ और आरोपियों को बचाने के लिए मोदी के पार्टी के ही लोग आगे आ गए। हाल में मुज़फ़्फ़रपुर और देवरिया से आ रही खबरें घबड़ाने वाली हैं। इन घटनाओं के बाद अन्य जगहों से शेल्टरहोम जैसे जगहों से कम उम्र और कमजोर महिलाओं के साथ बलात्कार इत्यादि की खबरें आ रहीं हैं। हाल ही में अंतरराष्ट्रीय समाचार संस्था रायटर्स ने एक सर्वे किया और पाया कि महिलाओं के लिए भारत सबसे असुरक्षित जगह है। यूँ तो सरकार ने इस सर्वे को खारिज किया लेकिन यह भी एक सत्य है कि 2013 में बने निर्भया फंड में सलाना एक हज़ार करोड़ जमा होता है जो खर्च तक नहीं हो पाता। उम्मीद की जानी चाहिए कि मोदी इसपर प्रकाश डालेंगे की उनकी सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए क्या क्या कदम उठाए।
2- बहुत हुआ बेरोजगारी की मार, अबकी बार मोदी सरकार: देश में अभी युवाओं की संख्या सबसे अधिक है। मोदी ने इसको भांपते हुए उन्हें रोजगार के सपने दिखाए। लेकिन सरकार में आने के बाद मोदी ने इस मुद्दे पर लगभग चुप्पी ही साध ली। बल्कि नोटबन्दी जैसे कुछ ऐसे कदम उठाए जिससे बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हुए। हर साल दो करोड़ युवाओं को रोजगार देने का वादा कर सत्ता में आये मोदी एक दो लाख युवाओं को भी रोजगार देने में असफल रहे। जब मोदी पर इसको लेकर सवाल खड़ा किया जाने लगा तो उन्होंने कहा कि रोजगार तो है पर रोजगार के आंकड़े नहीं हैं। तो क्या मोदी इस पर प्रकाश डालेंगे कि 2014 में भी आंकड़ो की कमी थी या रोजगार ही नहीं थे। अभी और तबकि स्थिति में क्या अंतर आया है?
3- बहुत हुआ देश में महंगाई की मार, अबकि बार मोदी सरकार: मोदी ने अपने चुनावी अभियान में महंगाई को भी बड़ा मुद्दा बनाया था। आज स्थिति उस समय से भी बदतर है। पेट्रोल-डीजल की कीमतें आसमान छू रही हैं खासकर तब जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें उतनी अधिक भी नहीं हैं। क्या नरेंद्र मोदी इस पर अपना पक्ष रखेंगे।
4- मोदी ने अपने चुनाव प्रचार में कालाधन को भी बहुत बड़ा मुद्दा बनाया था। लेकिन सत्ता में आने के बाद पता चला कि ये उन उद्योगपतियों के अधिक करीब हैं। मेहुल चौकसी, नीरव मोदी, विजय माल्या इत्यादि तो बस दिखने वाले नाम हैं जो बैंक का पैसा लेकर देश छोड़कर चले गए। कई सारे उद्योगपति तो अभी देश में ही हैं जिनपर बैंको का काफी एन पी ए है पर सरकार ने उनके खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया। मोदी सरकार पर राफेल डील में फ्रांस के साथ सस्ता समझौता रद्द कर महंगा समझौता करने और अनिल अंबानी को फायदा पहुंचाने का आरोप है। सरकार इस आरोप को वाजिब है नकार रही है लेकिन सरकार के कार्य या बयान संतोषजनक नहीं हैं। अब आलम यह है कि मोदी के भाषणों से कालाधन गायब ही हो गया है। उम्मीद है मोदी यह बतायंगे कि कालाधन लाने के नाम पर उन्होंने क्या किया और उसका क्या परिणाम निकला।
5- यद्यपि यह 2014 का मुद्दा नहीं है पर महत्वपूर्ण है। कुछ ऐसा कि बिना इसकी चर्चा किये आप इस सरकार पर बात पूरी नहीं कर सकते। नोटबन्दी। प्रधानमंत्री ने नोटबन्दी की घोषणा करते हुए कई सारे वादे किए थे। जैसे जाली नोट आने बंद हो जाएंगे, आतंकवादियों की कमर टूट जाएगी और कालाधन वापस आ जायेगा। इसको फेल होते देख मोदी सरकार ने ऑनलाइन लेनदेन को बढ़ावा देने की बात कही। मोदी से उम्मीद की जा सकती है कि वह लालकिले से बताएं कि इन चारों में से कौन सा लक्ष्य पूरा हुआ है।
यह भी एक सत्य है कि मोदी कुछ भी बोलकर निकल जाते हैं जो जमीनी हकीकत से एकदम अलग होता है। हो सकता है इन मुद्दों पर भी बोले। गलत बोलने पर कम से कम जनता अपने इर्द गिर्द की स्थितियों से तुलना तो कर सकेगी।