सौतुक डेस्क/
भारतीय निर्वाचन आयोग ने 2019 के लोकसभा चुनावों की तारीखों की घोषणा रविवार शाम कर दी और इसी घोषणा के साथ देश में आदर्श आचार संहिता तुरंत प्रभाव से लागू हो गई. आईये जानते हैं आदर्श आचार संहिता आखिर क्या है और क्या हैं इसके मायने?
प्रश्न: आदर्श आचार संहिता क्या है?
भारतीय निर्वाचन आयोग का आदर्श आचार संहिता चुनावों से पहले राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिए दिशानिर्देशों का समुच्चय है. इस दिशा निर्देश में भाषण, मतदान दिवस, मतदान केंद्रों, विभागों, चुनाव घोषणापत्रों की सामग्री, जुलूसों और सामान्य आचरण से संबंधित मुद्दों से सम्बंधित एक मानक तय किया जाता है. आचार संहिता का उद्देश्य देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया को दिशा देना है.
प्रश्न: आदर्श आचार संहिता कब लागू होती है?
प्रेस सूचना ब्यूरो के अनुसार, आदर्श आचार संहिता पहली बार 1960 में केरल के विधानसभा चुनाव में शुरू किया गया था. 1962 के चुनावों में सभी दलों द्वारा इसका बड़े पैमाने पर अनुसरण किया गया था और बाद के आम चुनावों में भी इसका पालन किया जाता रहा. अक्टूबर 1979 में, निर्वाचन आयोग ने इसमें एक अध्याय और जोड़ा जिसका उद्देश्यसत्ताधारी दल को चुनाव के समय अनुचित लाभ लेने से रोकना था.
यह निर्वाचन आयोग के चुनाव की घोषणा के साथ लागू हो जाता है और चुनाव के परिणाम आने तक लागू रहता है. इसका तात्पर्य यह हुआ कि देश में इस बार आदर्श अचार संहिता रविवार से लागू हो गई है.
प्रश्न: आदर्श आचार संहिता क्या प्रतिबंध लगाती है?
आदर्श आचार संहिता में कुल आठ प्रावधान हैं जो सामान्य आचरण, बैठकें, जुलूस, मतदान दिवस, मतदान केंद्र, पर्यवेक्षक, सत्ता में पार्टी और चुनाव घोषणा पत्र को दिशा निर्देश देते हैं.
इसके लागू होते ही सत्ताधीन पार्टी वो चाहे तो केंद्र की सरकार हो या राज्य की सरकार, उसे सुनिश्चित करना चाहिए कि वह चुनाव प्रचार के लिए अपनी सत्ता का उपयोग नहीं करे. इसलिए आचार संहिता के लागू हो जाने के बाद से सरकारकिसी भी नीति, परियोजना या योजना की घोषणा नहीं करती है. खासकर ऐसी योजना मतदाता के व्यवहार को प्रभावित कर सकती है. अपने चुनावी फायदे के लिए सत्तारूढ़ दल को सरकारी खजाने की कीमत पर विज्ञापन देने या प्रचार के लिए आधिकारिक जन माध्यमों का इस्तेमाल करना भी सही नहीं होता है.
आचार संहिता में यह भी कहा गया है कि मंत्रियों को आधिकारिक यात्राओं के साथ चुनाव प्रचार के कार्यों को नहीं मिलाया जान चाहिए या चुनाव प्रचार के लिए सरकारी मशीनरी का उपयोग नहीं करना चाहिए. सत्ता पक्ष भी चुनाव प्रचार के लिए सरकारी परिवहन या मशीनरी का उपयोग नहीं कर सकता है. इसके साथ यह भी सुनिश्चित करना होता है कि चुनावी सभाओं के आयोजन के लिए सार्वजनिक स्थानों जैसे कि मैदान, हेलीपैड के उपयोग की सुविधा विपक्षी दलों को भी उन्ही शर्तों पर उपलब्ध हो जिसपर यह सत्तारूढ़ दल के लिए उपलब्ध होता है. समाचार पत्रों और अन्य मीडिया में सरकारी खजाने की कीमत पर विज्ञापन जारी करना भी अपराध माना जाता है. सत्तारूढ़ सरकार मतदाताओं को प्रभावित किया करने के लिए सार्वजनिक उपक्रमों आदि में कोई भी नियुक्ति नहीं कर सकती है.
राजनीतिक दलों या उम्मीदवारों की आलोचना उनके काम के रिकॉर्ड के आधार पर की जा सकती है और मतदाताओं को लुभाने के लिए किसी जाति और सांप्रदायिक भावनाओं का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. मस्जिदों, चर्चों, मंदिरों या किसी अन्य पूजा स्थलों का उपयोग चुनाव प्रचार के लिए नहीं किया जाना चाहिए. मतदाताओं को रिश्वत देना, डराना या धमकाना भी वर्जित है. मतदान के समापन के लिए निर्धारित घंटे से ठीक 48-घंटे पहले सार्वजनिक बैठकें या प्रचार इत्यादि रोक देना होता है.
प्रश्न: क्या आदर्श आचार संहिता कानूनी रूप से बाध्यकारी है?
नहीं. आचार सह्निता मुक्त और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए निर्वाचन आयोग के अभियान के प्रयासों के रूप में वजूद में आया. यह सभी राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति का परिणाम था. इसका कोई वैधानिक आधार नहीं है. सीधे शब्दों में कहें, तो इसका मतलब यह है कि आचार संहिता को भंग करने वाले के खिलाफ कुछ ख़ास नहीं किया जा सकता है. इसमें सब कुछ स्वैच्छिक है.
किसी अन्य पार्टी या व्यक्ति द्वारा शिकायत के आधार पर निर्वाचन आयोग किसी राजनेता या किसी पार्टी को आचार संहिता के उल्लंघन के लिए नोटिस जारी कर सकता है. नोटिस जारी होने के बाद व्यक्ति या राजनितिक दल को लिखित रूप में जवाब देना होता है. जिसके खिलाफ शिकायत दर्ज हुई है उसे आरोप को खारिज करना होता है या गलती स्वीकार कर बिना शर्त माफी मांगनी होती है.
बहुत जरूरी बात को बहुत सरल तरीके से समझाया गया है। और ये बात भी बतानी जरूरी थी कि इसका उलंघन करने वाले बस माफी मांग कर छूट जाते हैं।
ऐसे ही कुछ और लेखों का इंतज़ार रहेगा जो व्यवस्था की समझ बढ़ाये आम नागरिकों में !!!