शिखा कौशिक/
पांच राज्यों में चुनावी घमासान शुरू हो चुका है और इसे लोक सभा चुनाव के पहले सेमी फाइनल की तरह देखा जा रहा है. इन पाँचों राज्यों में मध्य प्रदेश पर सबकी नज़र होगी जहां भारतीय जनता पार्टी करीब पंद्रह सालों से सत्ता में है. कुछ गणित भिड़ाया जाए तो लगता है कि शिवराज सिंह चौहान के सत्ता में पुनः आने की सम्भावना है पर कांग्रेस के पास भी चौहान को चित्त करने का पूरा मौका है.
कांग्रेस अव्वल तो इस बार संगठित लग रही है और कई नेताओं में बंटी यह पार्टी इस बार इसको ताकत बना के लड़ रही है. इस राज्य में कांग्रेस के पास कई दिग्गज नेता हैं जैसे दिग्विजय सिंह जिनका राज्य की राजनीति में अपना महत्व है. एक तरफ महाकौशल क्षेत्र की बागडोर कमलनाथ जैसे पुराने नेता ने संभाल रखी है तो दूसरी तरफ ग्वालियर-चम्बल क्षेत्र की बागडोर ज्योतिरादित्य सिंधिया के पास है. राष्ट्रीय स्तर पर जाने-पहचाने इन चेहरों के अलावा विन्ध्य क्षेत्र में अजय सिंह हैं तो राज्य के मध्य क्षेत्र में सुरेश पचौरी, निमार क्षेत्र से अरुण यादव और झाबुआ-रतलाम जैसे आदिवासी क्षेत्र से कान्तिलाल भूरिया जैसे नेता हैं.
दूसरी तरफ शिवराज सिंह चौहान इस बार थोड़ा थके हुए लग रहे हैं. उनपर व्यापम जैसे घोटालों का आरोप है और कई बड़े नेता साथ में नहीं है. इस बार 2013 के मुकाबले नरेन्द्र मोदी की रैली भी कम हो रही है. इसको देखते हुए कहा जा सकता है कि कांग्रेस अगर सावधानी से लड़ाई लड़ी तो चौहान को परास्त कर सकती है.
पिछले महीनों में हुए कई ओपिनियन पोल ने भी कुछ ऐसा ही इशारा किया. यद्यपि ये सारे पोल भाजपा को अधिक समर्थन बता रहे थे पर सबने कांग्रेस की बढ़त की तरफ इशारा भी किया.
कांग्रेस को मालूम है कि अगर इस बार नहीं जीते तो हो सकता है कि पूरे देश में इसके अस्तित्व पर ही खतरा हो जाए
पिछले तीन विधानसभा चुनावों से लड़ाई लगभग एकतरफा रही है और कांग्रेस किसी तरह से अपनी मौजूदगी बचा पाई है. जैसे इस पार्टी ने 2003 में 37, 2008 में 71 और 2013 में 58 सीटें हासिल की थीं जबकि भाजपा ने लगातार अच्छा प्रदर्शन करते हुए 173,143 और 165 सीटों पर अपना झंडा फहराया था.
लेकिन कांग्रेस इस तरह का परिणाम अब बर्दाश्त करने की क्षमता नहीं रखती और इस पार्टी को मालूम है कि अगर इस बार नहीं जीते तो हो सकता है कि पूरे देश में इसके अस्तित्व पर ही खतरा हो जाए. इसी कारण कांग्रेस जीतने के तरीकों को हर रूप में अपनाने को बेताब है.
शायद इसीलिए कांग्रेस द्वारा हाल ही में जारी किये गए घोषणापत्र में कृषि, महिलाओं, बेरोजगार युवाओं, औद्योगिक क्षेत्र सबको बराबर जगह दी गई.
चुनाव में जमीन पर कार्य कर रहे विशेषज्ञ बताते हैं कि कांग्रेस भी इस बार भाजपा और खासकर अमित शाह वाली शैली में सक्रिय है. बूथ स्तर पर लोगों को गाईड किया जा रहा है. हर विधानसभा क्षेत्र का गहरे अध्ययन किया गया है. पार्टी ने इस बार कई ऐसे लोगों को टिकट दिया है जो सीधे जनता से जुड़े हैं. यह सब देखते हुए लगता है कि अगर आखिरी तक पार्टी में लड़ाई में बनी रही तो बाजी अपने पक्ष में कर सकती है.
इन सबके बावजूद एक बात कांग्रेस के खिलाफ जाती दिख रही है. यह पार्टी मायावती के साथ गठबंधन बनाने में नाकाम रही है. बसपा ने पिछले चुनावों में लगभग 6.5 प्रतिशत वोट कमाया था. अगर यह वोट कांग्रेस से जुड़ जाते तो शिवराज की मुश्किलें और बढ़ जातीं.