उमंग कुमार/
केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने 3 मार्च को नागपुर महानगर पालिका के मेयर इनोवेशन अवार्ड्स समारोह में युवा इनोवेटर्स को बताया कि यदि भारत अपने लोगों के मूत्र को संग्रह करे तो यूरिया के निर्माण में इसका उपयोग किया जा सकता है. अगर ऐसा संभव हो पाया तो देश को रासायनिक उर्वरक या खाद आयात करने की आवश्यकता नहीं होगी. गडकरी पहले भी ऐसे प्रस्ताव दे चुके हैं. जैसे 2015 में उन्होंने कहा था कि वह अपने बगीचे में उपयोग के लिए मूत्र संग्रह करते हैं. उन्होंने दावा किया था कि उनके बागीचे के जिन पौधों को “मूत्र चिकित्सा” मिली उनका विकास अधिक हुआ बनिस्बत के वैसे पौधे जिन्हें सिर्फ पानी से सींचा गया. इसके बाद गडकरी ने 2017 में फिर से हर तहसील में मूत्र बैंक स्थापित करने का सुझाव दिया था. उनके इन सुझावों पर या तो लोग हँसते हैं या चुप्पी मार जाते हैं, लेकिन गडकरी यूरिया उर्वरक के लिए लागातार इस तरीके पर जोर देते रहे हैं.
अव्वल तो यह जानें कि देश में यूरिया की खपत कितनी है. भारत में सालाना लगभग तीन करोड़ टन यूरिया की खपत होती है. इसमें से 2.4 करोड़ टन का उत्पादन देश में होता है और 60 लाख टन का आयात होता है. नवंबर 2017 में ‘मन की बात’ संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2022 तक यूरिया की खपत में आधे से अधिक कटौती करने का आह्वान किया था. भारत में यूरिया की अधिक खपत की पीछे इसकी कम कीमत बताई जाती है. देश में यूरिया की कीमत दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के पड़ोसी देशों के साथ-साथ चीन से भी कम है.
देश में यूरिया की खपत कितनी है. भारत में सालाना लगभग तीन करोड़ टन यूरिया की खपत होती है. इसमें से 2.4 करोड़ टन का उत्पादन देश में होता है और 60 लाख टन का आयात होता है
दूसरा गडकरी ने कोई नया विचार नहीं दिया है. इस मुद्दे पर दुनिया भर में कई वैज्ञानिक शोध में लगे हुए हैं और मूत्र से नाइट्रोजन सामग्री को अलग करने के तमाम प्रयास हो रहे हैं.
दक्षिण अफ्रीका में 2011 में बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने यूनिवर्सिटी ऑफ़ क्वाज़ुलु-नटाल के प्रदूषण शोध समूह को 400,000 डॉलर का अनुदान देने की घोषणा की. इस अनुदान से इन शोध करने वालों को एक ऐसे शौचालय प्रणाली का विकास करना था जिससे शौच में आये मूत्र और मल को अलग किया जा सके.
इसी तरह 1990 के दशक की शुरुआत में स्वीडन में इस विषय पर कुछ काम किया गया. वहाँ की सरकार ने एक मूत्र पृथक्करण परियोजना शुरू की. इसके तहत घरों में विशेष शौचालय और भंडारण टैंक बनाया गया. कुछ ऐसा कि लोगों के मल को मूत्र से अलग किया जा सके. सन् 2000 और 2005 के बीच इस योजना के प्रति स्थानीय प्रशासन ने थोड़ी बेरुखी दिखाई पर अब पुनः ऐसे शौचालय के प्रयोग के इस्तेमाल को प्रोत्साहित किया जा रहा है.
रही भारत में ऐसे प्रयोग की बात तो अब तक यह सिर्फ विचार ही रहा है. इस देश में यह करना थोड़ा मुश्किल भी प्रतीत होता है क्योंकि इसके लिए बड़े पैमाने पर नए डिजाईन के शौचालय बनाने पड़ेंगे.