उमंग कुमार/
उधर केरल में सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश को लेकर राजनीति तो दूसरी तरफ राष्ट्रीय सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत का विजयादशमी के अपने सलाना संबोधन में अयोध्या के राम मंदिर का जिक्र करना दर्शाता है कि मोदी सरकार बेसब्री से देश का ध्यान भटकाना चाहती है. क्योंकि इस सरकार के पास इस साढ़े चार साल के शासन की कोई ऐसी उपलब्धि नहीं है जिसपर वोट माँगा जा सके. मोदी सरकार सामाजिक और आर्थिक, दोनों फ्रंट पर पिटती नज़र आ रही है.
‘बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ’ का नारा मोदी सरकार के महिला-हितैषी होने की तस्वीर बनाती उसके पहले एम जे अकबर जैसे नेता इसका मजाक बना देते हैं. ऐसा एक बार नहीं बल्कि बार बार हो रहा है. इसमें कठुआ और उन्नाव की घटना भी शामिल कर लीजिये.
इस हफ्ते बुधवार को वह नज़ारा देखने को मिला जब भारत के विदेश मामलों के राज्य मंत्री एम जे अकबर को इस्तीफ़ा देना पड़ा. इस मुद्दे पर अति-वाचाल पार्टी प्रवक्ता संबित पात्रा को भी भागने की नौबत आ गई. जब मीडिया ने उनसे अकबर को लेकर सवाल दागा.
एम जे अकबर के इस इस्तीफे से केंद्र में बैठी एनडीए सरकार की प्रतिष्ठा को करारा झटका लगा है.
महत्त्वपूर्ण बात यह नहीं है कि उन्होंने इस्तीफ़ा दिया है. इस्तीफे पहले भी होते रहे हैं. यूपीए की सरकार में तो यह काफी सामान्य बात हो गई थी. याद कर लीजिये दयानिधि मारन समेत आधे दर्जन नेताओं का इस्तीफ़ा. लेकिन अकबर का इस्तीफ़ा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस घटना ने सरकार से एक बड़ा मुद्दा छीन लिया है. इसने वर्तमान सरकार की छवि को काफी क्षति पहुंचाई है. जिन महिलाओं ने अकबर के खिलाफ शिकायत की है वो एक वर्ग विशेष की प्रतिनिधि हैं. मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग: जहां सभी परिवार अब अपनी बेटियों को पढ़ा-लिखाकर नौकरी करते देखना चाहता है. इन परिवारों की सबसे बड़ी चिंता इन बच्चियों की सुरक्षा है. तो अकबर ने पार्टी की महिला-हितैषी दिखने के स्वप्न का पलीता लगा दिया है.
ऐसे माहौल में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का यह दावा कि “हम 50 साल तक सरकार चलाने वाले हैं”, बहुत खोखला नज़र आने लगा है. राजनीति की समझ रखने वाले अनुभवी लोग बताएँगे कि सत्तासीन दल ऐसे दावे तभी करते हैं जब उन्हें लगता है कि जनता का भरोसा सरकार से उठने लगा है. ऐसे बयान उस कम होते भरोसे को किसी तरह से रोकने की कवायद भर है.
इसकी पड़ताल दूसरे तरीके से भी की जा सकती है. जैसे यही कि आखिर किस बूते शाह ऐसा दावा कर रहे हैं. भ्रष्टाचार, अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी जैसे सभी मुद्दों पर तो सरकार फिसलती नज़र आ रही है. आईये एक एक कर के इन सभी मुद्दों पर नज़र डालते हैं.
अर्थ व्यवस्था भी मुश्किल दौर में
अभी अक्टूबर माह में ही, विदेशी निवेशकों ने मार्केट से लगभग 19,000 करोड़ रुपये की निकासी की है. यह रकम सितम्बर में बाज़ार से निकाली गई रकम (9,450 करोड़ रुपये) का लगभग दोगुना है. अगस्त से तुलना करें तो यह लगभग नौगुना बैठता है.
इसकी वजह भी साफ़ है. भारतीय कंपनियों का मुनाफा कम होता जा रहा है. सेंटर फॉर मोनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) के अध्ययन की मानें तो भारत की 10 शीर्ष कंपनियों के शुद्ध लाभ में लगभग 30 प्रतिशत की गिरावट देखने को मिली है.
भारतीय अर्थव्यवस्था की यह स्थिति दिन प्रतिदिन बिगडती जा रही है. CMIE के आंकड़े बताते हैं कि निवेश में भारी गिरावट दर्ज की जा रही है. सितम्बर 2018 की तिमाही में कुल 15.8 लाख करोड़ रुपये की नई परियोजनाएं शुरू हुईं. यह पिछली चार तिमाहियों की तुलना में सबसे कम रहा. पुरानी योजनाओं की स्थित भी कुछ इसी तरह की रही.
इससे पता चलता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था पर से निवेशकों का भरोसा उठ रहा है.
बढ़ती बेरोज़गारी
निवेश के कम होने और कई कम्पनियों के बंद होने की वजह से बेरोज़गारी भी बहुत तेज़ी से बढ़ी है. बेरोज़गारी की बढती दर से सरकार जरुर सहमी हुई होगी. यह डर 30 जुलाई 2017 को 3 प्रतिशत थी और अब 23 सितम्बर 2018 को बढ़कर 8 प्रतिशत तक पहुँच गयी है.
इन सभी चीज़ों का बहुत बुरा राजनीतिक प्रभाव हमें देखने को मिल सकता है. बेरोज़गारी से बढती झुंझलाहट और वर्ग एवं जाति एक मुद्दों को लेकर बँटते समाज की छाया अब देश में दिखने लगी है.
जनांदोलन सब इसी के नतीजे हैं. महाराष्ट्र में किसानों द्वारा अपनी मांगों को लेकर हुई भारी रैली, गुजरात से उत्तर प्रदेश और बिहार के मजदूरों का भगाया जाना. यह सब इसी बढती बेरोजगारी का नतीजा है.
भ्रष्टाचार को रोकने में नाकाम रही सरकार
पिछले दो साल में कई उद्योगपतियों का देश छोड़कर चले जाना फिर राफेल डील को लेकर रोज एक नया खुलासे ने सरकार की बोलती बंद कर दी है. कम से कम भ्रष्टाचार के मुद्दे पर. अब मोदी सरकार भी चाह रही होगी कि चुनाव में भ्रष्टाचार कोई मुद्दा न बने वहीँ विपक्ष को मोदी सरकार को घेरने का एक जोरदार मुद्दा मिल गया है.
मोदी सरकार के लिए अब यह बड़ी चुनौती होगी कि वह किन मुद्दों को लेकर जनता के सामने आएगी तथा आगामी चुनावों में किस तरह से अपने विकास का मॉडल पेश करेगी. शायद यही वजह है कि चुनाव के नजदीक आते ही साढ़े चार साल से सोयी सरकार को भगवान् राम याद आने लगे हैं.