उमंग कुमार/
क्या अमेरिका पाकिस्तान को आधिकारिक तौर पर उन देशो के श्रेणी में शामिल कर पायेगा जो आतंकवाद को समर्थन और बढ़ावा देते हैं?
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प जब से सत्ता में आये हैं तब से उन्होंने अफगानिस्तान और दक्षिण एशिया को लेकर एक ख़ास रणनीति अपनाई है. ट्रम्प और अमेरिका अब खुलकर ऐसा आरोप लगाते हैं कि पाकिस्तान आतंकवाद और हिंसा को प्रश्रय देता है. इसकी वजह से अमेरिका और पाकिस्तान के रिश्ते में हाल-फिलहाल में दरार बढ़ी है. यहाँ तक कि जनवरी एक के अपने ट्वीट में ट्रम्प ने पकिस्तान को ‘झूठ बोलने और धोखा देने वाला देश’ कहकर संबोधित किया. इसके तुरंत बाद वाइट हाउस ने घोषणा की कि वह पाकिस्तान को सुरक्षा के नाम पर देने वाली सारी आर्थिक मदद रोक रहा है. जब तक पाकिस्तान हक्कानी समूह के खिलाफ कुछ ठोस कदम नहीं उठाता, अमेरिका के अनुसार उसे कोई मदद नहीं मिलने वाली है.
अब इसके अगले कदम पर अमेरिका ने इंग्लैण्ड के साथ मिलकर फाइनेंसियल एक्शन टास्क फ़ोर्स (FATF) में दरख्वास्त की है कि पकिस्तान को उन देशों की श्रेणी में डाला जाए जो आतंकवाद को आर्थिक तौर पर मदद करते हैं. पेरिस स्थित FATF ही वह संस्था है जो वैश्विक स्तर पर गैरकानूनी लेन-देन के मानक तय करता है. आने वाली अगली मीटिंग में यह संस्था इस निवेदन पर विचार करने वाली है. यह मीटिंग फ़्रांस में होगी.
अगर यह संस्था पाकिस्तान को उस श्रेणी में डालने का फैसला लेती है तो पाकिस्तान के सारे अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक लेन-देन निगरानी में आ जायेंगे
अगर यह संस्था पाकिस्तान को उस श्रेणी में डालने का फैसला लेती है तो पाकिस्तान के सारे अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक लेन-देन निगरानी में आ जायेंगे.
अमेरिका ने इसके लिए इंग्लैण्ड, जर्मनी, और फ़्रांस जैसे देशों को भी अपने पक्ष में कर रखा है. लेकिन अमेरिका ऐसा करने में सफल होगा भी की नहीं ये देखने की बात होगी. यह इस पर निर्भर करेगा कि पाकिस्तान के पक्ष में चीन और सऊदी अरब किस हद तक अमेरिका को समझा सकते हैं.
पकिस्तान ने भी प्रयास तेज कर दिए हैं और इसके लिए इस देश के पास चीन और सऊदी अरब ही आखिरी मगर मजबूत उम्मीद हैं. पकिस्तान के द एक्सप्रेस ट्रिब्यून के अनुसार इस्लामाबाद ने सऊदी अरब में अपने अधिकारियों को भेजा है. ये अधिकारी सऊदी अरब से निवेदन करेंगे कि वह अमेरिका को समझाए तथा पाकिस्तान के प्रति अमेरिका के उग्र बयानबाजी को कम करने को कहे.
दूसरी तरफ, पाकिस्तान चीन से भी कुछ ऐसी ही उम्मीद लगाए बैठा है.
सऊदी अरब और चीन दोनों इस स्थिति में है कि अमेरिका पर अपने रुख में परिवर्तन लाने का दबाव डाल सकते हैं. सऊदी अरब के तो अमेरिका से काफी नजदीकी संबध हैं वहीँ चीन और अमेरिका में बड़े स्तर पर व्यापारिक सम्बन्ध हैं. पाकिस्तान चाहता है कि चीन इस व्यापारिक रिश्ते का प्रयोग करे और अमेरिका पर दबाव बनाए.
भारत जो इस पूरे खेल में अब तक चुप्पी साधे हुए है उसके लिए भी यह अहम् फैसला होने जा रहा है. अगर वाकई पाकिस्तान वैसे देशों के समूह में शामिल हो जाता है तो भारत को बड़ी कूटनीतिक बढ़त मिलेगी. भारत अपने पडोसी मुल्क पाकिस्तान पर हमेशा आतंकवाद को प्रोत्साहित करने का आरोप लगाता रहा है.