विनीता परमार/
जानवरों और वृक्षों की छाल से तन ढकने वाले मनुष्य से कपड़े से अपना शरीर ढंका होगा और समुद्र के किनारे किसी जंगल या दलदल में फंसने की स्थिति में सिग्नल देने के लिए कपड़े को फाड़कर किसी बड़ी लकड़ी से बांधकर फहराया होगा और उस कपड़े के टुकड़े से मदद की गुहार लगाई होगी। उसे क्या पता कि चुनौतीपूर्ण संचार के वातावरण में प्रयुक्त इस कपड़े के टुकड़े को झंडा नाम दे दिया जायेगा और इसका एक अलग विज्ञान होगा। ध्वज का इतिहास रोमन काल का है। झंडे के अध्ययन को “वेक्सिलोलॉजी” के रूप में जाना जाता है, लैटिन वेक्सिलम का अर्थ ध्वज, झंडा या बैनर होता है।
फिर मनुष्य ने कबीले और राज्यों को जीतने की कवायद शुरु की बचाव के लिए प्रयुक्त झंडा अपने सैनिकों के बीच समन्वय कायम करने के लिए यह झंडा इस्तेमाल होने लगा। हालांकि झंडे की तरह संकेतों का प्रयोग प्राचीन सभ्यताओं में हुआ है कुछ लोग कहते हैं चीन में झंडे की उत्पत्ति हुई तो कुछ का मानना है रोम की सभ्यता का बाज पहली बार झंडे में प्रयुक्त हुआ था। भारत के प्राचीन युद्धों के साथ महाभारत काल में भी युद्ध के दौरान झंडे प्रयुक्त हुए हैं। मध्यकाल में झंडा व्यक्ति प्रधान हो गया यह अलग-अलग व्यक्तियों की पहचान लड़ाई के दौरान करवाता था। यूरोप के नाईट, जापान के समुराई और चीन के शाही सेना के अलग झंडे होते थे। जब यूरोपीय सेना में उठापटक हुई और झंडे राष्ट्रीयता के प्रतीक बनने लगे और जीत का झंडा गाड़ा जाने लगा। इसी बात को मद्देनजर प्रथम विश्व युद्ध के मैदान में झंडा ले जाने पर रोक लगा दी गई थी।
क्रिस्टोफर कोलंबस जब विश्व यात्रा पर निकला उसी समय से समुद्री यात्राओं के लिए अपने देश का झंडा लगाना वैधानिक रूप से जरुरी हो गया और झंडे समुद्री झंडे से राष्ट्रीय झंडे में विकसित हो गए।
22 जुलाई 1947 के दिन भारतीय संविधान सभा ने तिरंगे को, देश के झंडे के रूप में स्वीकार किया था
दुनिया के हर आजाद देश के पास अपना झंडा है जो उस देश के लोगों में एक पहचान, गौरव और अस्मिता की भावना भरता है। डेनमार्क का ध्वज (1370 ई. या उससे पहले) अभी भी उपयोग में आने वाला सबसे पुराना राष्ट्र ध्वज है। द डैनब्रॉग नामक इस झंडे ने अन्य नॉर्डिक देशों के क्रॉस डिजाइन करने को प्रेरित किया है। नीदरलैंड का तिरंगा सबसे पुराना तिरंगा है, जो पहली बार 1572 में नारंगी-सफेद-नीले रंग में राजकुमार के झंडे के रूप में दिखाई दिया था। डच तिरंगे ने कई झंडों को प्रेरित किया है, लेकिन विशेष रूप से वे रूस, भारत और फ्रांस के हैं, जिन्होंने तिरंगे की अवधारणा को और भी अधिक फैला दिया है। नीदरलैंड का झंडा भी दुनिया में एकमात्र झंडा है जो कुछ उपयोगों के लिए अनुकूलित है, जब किसी घटना का संबंध नीदरलैंड के रॉयल हाउस से होता है, तो एक नारंगी रिबन जोड़ा जाता है। ध्वज एक विशिष्ट डिजाइन और रंगों के साथ कपड़े का एक टुकड़ा (सबसे अक्सर आयताकार या चतुर्भुज) होता है लेकिन नेपाल के पास 1743 ई. से ही अपना एक स्वतंत्र झण्डा है जो चौकोर या चतुर्भुज की तरह नहीं है।
अभी एक सौ सनतानबे देशों के पास अपना स्वतंत्र झंडा है। हमारे देश के पास भी एक झंडा है, पहाड़ों की चोटियों पर या खेल के मैदान में अगर देश का झंडा लहराता है तो हमारा सीना चौड़ा हो जाता है। 22 जुलाई 1947 के दिन भारतीय संविधान सभा ने तिरंगे को, देश के झंडे के रूप में स्वीकार किया था। 1921 में पिंगली वेंकैया ने हरे और लाल रंग का इस्तेमाल कर झंडा तैयार किया। बाद में सुझावों के बाद इसमें सफेद रंग की पट्टी और चक्र को जोड़ा गया। तेनजिंग ने माउंट एवरेस्ट फतह के बाद तो राकेश शर्मा ने अंतरिक्ष में तिरंगा लहराया। कर्नाटक के बेलगाम में 110 मीटर (360.8 फीट) ऊंचा तिरंगा फहराया गया। अब यह देश का सबसे ऊंचा झंडा है। जब – जब यह झंडा लहराता है मन में अपने देश के प्रति भाव उमड़ने घुमड़ने लगते हैं।
(लेखिका युवा कवियत्री हैं और विभिन्न विषयों पर स्वतंत्र लेखन करती हैं)