सौतुक डेस्क/
जिसके बारे में मिर्ज़ा ग़ालिब ने कभी कहा था कि ‘रेख़्ते के तुम ही नहीं हो उस्ताद ग़ालिब, कहते हैं पिछले ज़माने में कोई ‘मीर’ भी था.’ उसी मीर की आज पुण्यतिथि है. लोग उन्हें तरह तरह से याद करते हैं, हिंदी के प्रसिद्ध कवि आलोक धन्वा ने उन्हें कुछ इस तरह याद किया था. पढ़िए उनकी एक खूबसूरत कविता.
मीर
मीर पर बातें करो
तो वे बातें भी उतनी ही अच्छी लगती हैं
जितने मीर
और तुम्हारा वह कहना सब
दीवानगी की सादगी में
दिल-दिल करना
दुहराना दिल के बारे में
ज़ोर देकर कहना अपने दिल के बारे में कि
जनाब यह वही दिल है
जो मीर की गली से हो आया है.
(स्रोत- कविता कोश)