रबीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा बच्चों के लिए लिखे ‘हास्य कौतुक-व्यंग्य कौतुक’ नाटकों और उनके ही नाटक ‘राजा’ को बांग्ला के नाटककार शुभाशीस गंगोपाध्याय ने एक साथ पिरोकर ‘भांड यात्रा’ नामक एक नया बांग्ला नाट्य आलेख तैयार किया है. इसी बांग्ला नाट्य आलेख को आधार बनाकर ‘खेल पहेली’ नामक एक नया नाट्य आलेख हिंदी में मृत्युंजय प्रभाकर द्वारा तैयार किया गया. उसी हिंदी आलेख की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए मृत्युंजय प्रभाकर ने लगभग दर्जन भर गीतों की रचना की है. नाटक का मंचन अभी जनवरी महीने के बीच में ही राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के द्वितीय वर्ष के छात्रों द्वारा देश के वरिष्ठ रंग निर्देशक पदमश्री बंसी कौल के निर्देशन में हुआ है. नाटक का संगीत निर्देशन देश की वरिष्ठ रंग संगीत विशेषज्ञ सुश्री अंजना पुरी जी द्वारा किया गया.
मृत्युंजय प्रभाकर रंगमंच निर्देशक, नाटककार, नाट्य समीक्षक, शिक्षक और कवि हैं. आप सामाजिक-राजनीतिक सरोकारों को नाट्य और अपनी कविता का विषयवस्तु बनाते हैं. पश्चिम बंगाल के शांतिनिकेतन में विश्व-भारती विश्वविद्यालय में नाटक और थिएटर कला के सहायक प्रोफेसर हैं.

गीत-1
(स्वागत गीत)
ताई रे नाई रे नाई रे नाय कुछ नहीं है हाथ में हाय फिर भी झूमते-गाते जाएं ताई रे नाई रे नाई रे नाय रात हो या दिन हो भाय हम तो झूमते-गाते जाएं ताई रे नाई रे नाई रे नाय सोना-चांदी, गाड़ी पाए जिनके बंगला अटारी हाय उनके भी हम घर में गाएं ताई रे नाई रे नाई रे नाय दीन-हीन और बेघर वार खाने को नहीं कौड़ी यार उनके भी हम दिल बहलाएं ताई रे नाई रे नाई रे नाय
गीत-2
(भांड़ दल द्वारा वसंत का स्वागत)
आओ-आओ रे आओ, सखि आया वसंत देखो चारों दिशा से, उड़ा आए है रंग ज्यूँ सारे कुएं में, पड़ गई हो भंग आओ-आओ रे आओ, सखि आया वसंत आओ रे ताऊ मोरे, आओ रे बंधु आओ रे भाई मोरे, आओ रे मीतू मिल-जुल मचाएं धमाल, सखि आया वसंत आओ-आओ रे आओ, देखो आया वसंत देखो चारों दिशा से, उड़ा आए है रंग ज्यूँ सारे कुएं में, पड़ गई हो भंग आओ-आओ रे आओ, देखो आया वसंत आओ रे सखी मोरे, आओ रे साजन आओ रे साथी मोरे, आओ रे बालम नाचेंगे तोड़ सारे बंधन, सखि आया वसंत आओ-आओ रे आओ, सखि आया वसंत देखो चारों दिशा से, उड़ा आए है रंग ज्यूँ सारे कुएं में, पड़ गई हो भंग आओ-आओ रे आओ, सखि आया वसंत
गीत-3
(एक अति सोचने वाले बालक की चिंता को दर्शाता गीत)
भावना में भावना को भावना होगा क्या इसका नाम फिर चाहना होगा जो भी कर लो ज़िंदगी उलाहना होगा इससे बेहतर तो बैठे-बैठे ताड़ना होगा रात थी पहले कि या आया था दिन मुर्गी आई थी या कि पैदा हुआ डिम सूरज मामा क्यों यूं भक-भक जलते हैं चंदा मामा क्यों थके से अटके रहते हैं ये लोग दिन-रात जो दौड़ते रहते हैं मरने से पहले आखिर कहां पहुंचते हैं मरने के बाद भी क्या जीवन होता है अच्छा ऐसा है तो फिर बप्पा कहाँ है भावना में भावना को भावना होगा क्या इसका नाम फिर चाहना होगा
गीत-4
(पेट दर्द से परेशान यात्री को तरह-तरह की मूर्खतापूर्ण उपाय बताकर काल के गाल में समा जाने को मजबूर करने वाले सहयात्री उसकी मौत के बाद उसके लिए गाते हैं.)
राम-राम हरि-हरि, राम-राम हरि टपक गया देखो जो, बात कही खरी ऐसी भी मैंने थी, बात क्या कही राम-राम हरि-हरि, राम-राम हरि डॉक्टर का आला ज्यूँ गले में झूली वैद्य जी का मुंह ज्यूँ सुरसा सी खुली होमियो में होम जैसे पैसे और कौड़ी यूं ही पड़ा है चित ये बीच रेलगाड़ी राम-राम हरि-हरि, राम-राम हरि टपक गया देखो जो, बात कही खरी ऐसी भी मैंने थी, बात क्या कही राम-राम हरि-हरि, राम-राम हरि अच्छा है मेरे चलते त्राण इसे मिली वो भी ऐसे-जैसे ट्रेन अब ये खुली पार लगा वो अब हम भी चलें घर जाकर बनाएं-खाएं मांस और मुर्गी राम-राम हरि-हरि, राम-राम हरि टपक गया देखो जो, बात कही खरी ऐसी भी मैंने थी, बात क्या कही राम-राम हरि-हरि, राम-राम हरि
गीत-5
(राजाकी तलाश से ऊबा भांड़ दलखुद को ही राजा घोषित करता है)
मैं भी राजा, तू भी राजा ये भी राजा, वो भी राजा हम सब हैं राजा अपने मन के राजा राज अगर ये हमसे है तभी वो राज हमारा है फिर अच्छा हो या बुरा उसमें हमारा हिस्सा है हम सब हैं राजा अपने मन के राजा जिसमें हमारा दिल ही नहीं अपना भला वो क्या होगा जिसमें साझा सपना नहीं वो सपना अपना क्या होगा हम सब हैं राजा अपने मन के राजा जिसमें अपनी बात नहीं वो अपनी सरकार नहीं इतनी सी बात समझ लेना लाल बुझक्कड़ खेल नहीं हम सब हैं राजा अपने मन के राजा उस 56 इंची छाती पर आ बैठ मजे से मूंग दलें जो अपनी पर हम आ जाएं तो महल-अटारी फूंक चलें हम सब हैं राजा अपने मन के राजा मैं भी राजा, तू भी राजा ये भी राजा, वो भी राजा हम सब हैं राजा अपने मन के राजा
गीत-6
(स्वर्ग में देव चन्द्र और देवी शीतला के बीच पनपे रोमांस पर चुटकी)
कहने भर को कोई चाहे जो भी कह ले है स्वर्ग अगर कोई प्रिय की गोद में है इनकार भला इससे अब कैसे करे कोई है स्वर्ग अगर कोई प्रिय की गोद में है हो नर या नारी देव हो या देवी है स्वर्ग अगर कोई प्रिय की गोद में है है दिल की बात गीली थोड़ी सीली-सीली है स्वर्ग अगर कोई प्रिय की गोद में है इश्क़ का चक्कर तो लग जाए बैठे-ठाले है स्वर्ग अगर कोई प्रिय की गोद में है लग जाए जो ये आग फिर बुझती कहाँ है ये है स्वर्ग अगर कोई प्रिय की गोद में है कहने भर को कोई चाहे जो भी कह ले है स्वर्ग अगर कोई प्रिय की गोद में है
गीत-7
(देवताओं की प्रेम लीला को देखकर बहके महिला भांड़ दल और पुरुष भांड़ दल का आपस में प्रेम निवेदन)
राधा - आ जा रचा ले न रास बबुए मिलेगा न हमसा खास बबुए लंबी सी रातें, छोटी ज़िंदगानी आहें भर भरकर न बीते जवानी कर ले तू इसका उपाय बबुए आ जा रचा ले न रास बबुए मिलेगा न हमसा खास बबुए कृष्ण - रास भला किसे बुरा लागे है स्वीटू डर बस लगे है जब से आया है मीटू ये कर दे न नाम बदनाम बबुनी आ जा रचा ले न रास बबुनी मिलेगा न हमसा खास बबुनी राधा - है प्यार mutual, तो फिर डर काहे का उसका करो value, जब लड़की कहे ना बस इतना समझ ले मर्द जात बबुए आ जा रचा ले न रास बबुए मिलेगा न हमसा खास बबुए कृष्ण - हे राधे, बात पते की तुमने कही है इसको मैंने दिल में lock कर ली है आओ कर लें प्यार, जो है हाँ बबुनी आ जा रचा ले न रास बबुनी मिलेगा न हमसा खास बबुनी राधा - आ जा रचा ले न रास बबुए मिलेगा न हमसा खास बबुए कृष्ण - आ जा रचा ले न रास बबुनी मिलेगा न हमसा खास बबुनी
गीत-8
(तीनों लड़के बाप को घेरकर गा रहे हैं)
हाय हाय हाय, हाय हाय हाय हाय रे हाय, हाय रे हाय हाय रे मेरा बाप, आज मरा जाए हाय रे हाय, हाय रे हाय हाय हाय हाय, हाय हाय हाय समझो बड़ी है ये दुर्घटना पड़ेगा कितना हमको खटना छोटे-बड़े सब जुटेंगे घर में इधर-उधर के परिवार वाले उनका भी ध्यान अब रखना पड़ेगा हाय रे हाय, हाय रे हाय हाय हाय हाय, हाय हाय हाय बुलाना पड़ेगा सकल समाज को अड़ोसी-पड़ोसी और कामकाजी जन को जिनका भी इनसे पाला पड़ा था आएंगे सब और जीमेंगे जम के अपना तो तय है दिवाला निकलेगा हाय रे हाय, हाय रे हाय हाय हाय हाय, हाय हाय हाय काम पड़ा है कितना सोच दम निकले बाबूजी इधर हैं अब तक लटके जाना है तुमको तो जाओ भी भाई लेटे-लेटे मत लेते रहो अंगड़ाई ये बात भी इनको समझाना पड़ेगा हाय रे हाय, हाय रे हाय हाय हाय हाय, हाय हाय हाय हाय हाय हाय, हाय हाय हाय हाय रे हाय, हाय रे हाय हाय रे मेरा बाप, आज मरा जाए हाय रे हाय, हाय रे हाय हाय हाय हाय, हाय हाय हाय
गीत-9
(कव्वाली की शक्ल में दो मंडलियों की भिड़ंत)
मंडली 1 - अं...अ.. अ.., अं ..अ ...अ.. खलबली खलबली खलबली खलबली दिल में लगी है, मन में लगी है आग ये जाने कैसी खलबली खलबली खलबली खलबली बोल - जो सुर के नहीं, जो तान के नहीं, जो मान के नहीं जो सा भी न जानें, पा भी न जानें, धा भी न जानें ऐसे भी आते हैं टक्कर देने, मुंह उठाए क्यों जाने खलबली खलबली खलबली खलबली दिल में लगी है, मन में लगी है आग ये जाने कैसी खलबली खलबली खलबली खलबली मंडली 2 - हं .. ..ह...ह.. , हं ...ह....ह.... मुँहबली मुँहबली मुँहबली मुँहबली दिल करता है तोड़ दें जाकर, हम दुश्मन की नली मुँहबली मुँहबली मुँहबली मुँहबली बोल - जिनका कोई ईमान नहीं, धर्म नहीं, संस्कार भी नहीं जो कविता का क भी न जानें, न ही रस का र जानें वो बदनसीब भी आ जाते हैं, लेने हमसे टक्कर मुँहबली मुँहबली मुँहबली मुँहबली दिल करता है तोड़ दें जाकर, हम दुश्मन की नली मुँहबली मुँहबली मुँहबली मुँहबली खलबली खलबली खलबली खलबली मुँहबली मुँहबली मुँहबली मुँहबली
गीत-10
(परेशान जनता का आह्वाहन करता एक पात्र जो पागल के वेश में रहता है)
चल नाच मछंदर, ताल मिला के काल के सर पे, फन फैला के जीवन की आपाधापी में, मत भाग तू वक़्त निकाल और, सोच ठहर के दुःख भी मिले तो, हाथ पकड़ के रख सीने में उसे, यार बना के मत बाँध तू खुद को, गफलत में चल यार न जी यूँ, मर-मर के बात समझ तू तेरा है, यही सच है ये दुनिया आनी-जानी है, छोड़ इसे मुक्ति चेतना आती है, अलसाई सी सामना कर उसका तू, नज़र मिलाके चल नाच मछंदर, ताल मिला के काल के सर पे, फन फैला के
गीत-11
(ठाकुर दा आकाश की ओर देखकर गाता है।)
बस एक दिया उम्मीद का ये मैं भी जलाऊँ, तू भी जलाए आएंगे एक दिन दिन वो सुहाने चमकेगा सूरज अपने भी घर में अंधेरे छिटकेंगे अपने भी घर से होली-दीवाली तब मनाएंगे जम के बस एक दिया उम्मीद का ये मैं भी जलाऊँ, तू भी जलाए आएगा एक दिन राज हमारा राज हमारा और राजा हमारा बदलेगा उस दिन सारा ज़माना उस दिन न होगा कोई दुख गवारा बस एक दिया उम्मीद का ये मैं भी जलाऊँ, तू भी जलाए ढूंढ लेंगी खुशियां अपना ठिकाना आएगा जब वो अपना ज़माना रोके रुकेंगी न उस दिन हमारी सीने की धड़कन, पैरों की थिरकन बस एक दिया उम्मीद का ये मैं भी जलाऊँ, तू भी जलाए
(नोट: सारे गीत नाटक के लिए ही लिखे गए पर इनमें से कुछ गीतों का इस्तेमाल नाटक में नहीं हो सका. इन गीतों की कुछ पंक्तियाँ भी समय की कमी की वजह से नाटक का हिस्सा नहीं बन पायीं)