जितेन्द्र राजाराम/

जिस भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का डंका आज चारो तरफ बज रहा है उसी को आठ प्रतिशत से 38 प्रतिशत मत पाने में 37 वर्ष लगे और कुछ 34 वर्षों में ही कांग्रेस, एक 46 प्रतिशत मत पाने वाली पार्टी गिरकर 19 प्रतिशत पर आ गई. ऐसा कैसे संभव हुआ इसको समझने के लिए एक साधारण सूत्र है जो समूचे जटिल विषय को सरल बना देता है.
देखिये कि 2014 और 2019 के दरम्यान कांग्रेस् का मत प्रतिशत बिलकुल भी नहीं बदला वहीं भाजपा को 2014 में 33 प्रतिशत मत मिले थे और पांच साल यानी हाल ही में संपन्न हुए चुनाव में कुल 38 प्रतिशत मत मिले. यानी पांच प्रतिशत का फायदा हुआ. यह पांच प्रतिशत कहाँ से आया? इसीको समझ लेने भर से पिछले 35-40 सालों में इन दोनों दलों की पूरी यात्रा समझ में आ जाती है.
इस लोकसभा चुनाव में कुल 90 करोड़ मतदाताओं में से 67 प्रतिशत ने मतदान किया. यानी 60.3 करोड़ लोगों ने सरकार चुनने में अपनी भागीदारी दिखाई. इस 2019 के लोकसभा चुनाव में पहली बार 21वीं सदी के युवा मतदान कर रहे थे. इनका जन्म 1996 से 2001 के दरम्यान हुआ था.
इन युवा मतदाताओं की कुल संख्या थी आठ करोड़. अगर इन युवाओं का मत प्रतिशत भी 67 ही माने (हालाँकि ये आँकड़ा कुछ कम भी हो सकता है) तो भी 5 से 6 करोड़ युवाओं ने 2019 में पहली बार मतदान किया. यानी की कुल मतदान में 11 प्रतिशत भागीदारी इन युवाओं की थी. ये युवा जो अभी अभी दुनिया को अपनी नज़र से देखना शुरू किये हैं, जिनमें अनुभव की कमी है पर महत्वाकांक्षी हैं, स्वप्नदर्शी हैं. इन्होंने सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
सोचिए, 186 लोकसभा क्षेत्र ऐसे थे जहाँ कांग्रेस और भाजपा सीधे आमने सामने थे. अगर कांग्रेस ने इन 11 प्रतिशत युवा मतदाताओं को साध लिया होता तो क्या परिणाम यही होता? वो भी तब जब बिना मतप्रतिशत में कोई इज़ाफ़ा किये ही कांग्रेस की सीट बढ़कर 51 हो गयीं है.
ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि किस नेता ने इन युवाओं से संवाद स्थापित करने की कोशिश की? किसने इनको साधने की कोशिश की? जवाब सिर्फ़ एक है और वो सबको मालूम है!
फिर भी बताइए किसने ‘परीक्षा में पास होने के नुस्ख़े’ नाम की किताब लिखी? कौन नेता है जिसने युवा हर दिलजीज सिनेमा कलाकारों के साथ सेल्फ़ी पोस्ट की? किसने क्रिकेट खिलाड़ियों से अपने अफ़साने गवाए? किस दल ने सभी स्कूली शिक्षकों को अपने दल के आईटी सेल का सदस्य बनाया और उन्हें बक़ायदा वेतन दिया?
इससे भी बड़ा सवाल, अगर 2024 में आम चुनाव हुए, तो क्या कोई दल युवा मतदाताओं की अनदेखी करने का जोखिम ले सकता है? फिर से सोचिए क्यों कि संघ ने 2024 की तैयारी अभी से शुरू कर दी है. निशाने पर यह युवा हैं. संघ के लोग सिनमाघरों के सामने जहाँ फ़िल्म ‘नरेंद्र मोदी’ दिखाई जा रही है, वहाँ गेट के बाहर खड़े हैं. कतार में खड़े होकर प्रत्येक दर्शक को संघ का सदस्य बनने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. जहाँ एक ओर विपक्षी दलों के आँसू भी नहीं सूखे हैं, विजयी दल गाँजे-भांग के नशे में मस्ती करने की जगह नहा धोकर मैदान में लौट आया है. निशाना है 2024.
उम्मीद है इस सूत्र से आप देश के दो बड़े राजनितिक दलों के पिछले तीन दशक की यात्रा को आसानी से समझ सकेंगे.
(जितेन्द्र राजाराम आजकल मध्य प्रदेश के शहर इंदौर में रहते हैं और सामाजिक राजनितिक बहस में खासा दिलचस्पी रखते हैं. इन विषयों को समझने -समझाने के लिए वे इतिहास और आंकड़ो को अपना हथियार बनाते हैं.)