डेढ़ साल पहले सफलता का दावा और काम अब भी अधूरा
शिखा कौशिक/
उत्तराखंड सरकार ने जून 2017 में घोषणा कर दी कि अब राज्य ओडीऍफ़ यानि ओपन ड़ेफेकेशन फ्री हो गया है. माने अब राज्य में सभी लोग शौचालय में ही शौच करते हैं, कोई खुले में नहीं जाता. यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान का हिस्सा है. इस अभियान के तहत भारत सरकार ने पूरे देश को अक्टूबर 2019 तक ओडीऍफ़ बनाने का फैसला किया है.
उत्तराखंड में भी भारतीय जनता पार्टी की सरकार है जिसने 2017 में ही घोषणा कर दी थी कि राज्य ने इस उपलब्धि को पा लिया है. लेकिन अभी सूचना के अधिकार के तहत पता चला है कि राज्य में 65 हज़ार शौचालय अब भी बनाए जाने हैं. यह राज्य में लक्ष्य को पा जाने की घोषणा के डेढ़ साल बाद की स्थिति है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या ये 65 हज़ार परिवार दूसरे के घरों में बने शौचालय का इस्तेमाल करते हैं?
यह आरटीआई हल्दवानी के एक कार्यकर्ता हेम चन्द्र कपिल ने डाली थी जिससे इस सत्य का खुलासा हुआ है. सरकार से मांगी गई जानकारी से पता चला है कि जहाँ, उधम सिंह नगर में 17,004 शौचालय अभी बनने हैं. वहीँ हरिद्वार में 8,203 तो उत्तरकाशी में 6,518 शौचालय अभी बनने हैं. अन्य जिलों की भी कमोबेश यही स्थिति है. सूचना के अधिकार के तहत इस जानकारी को मांगने वाले हेम चन्द्र ने मीडिया को बताया कि अभी तीन जिले नैनीताल, अल्मोरा और चमोली का आंकड़ा नहीं मिल पाया है. इन जिलों को मिला दिया जाए तो अभी बनाए जाने वाले शौचालयों की संख्या और बढ़ेगी.
इसके पहले सीएजी रिपोर्ट में भी सरकार के इस घोषणा की खिंचाई की गई थी. वर्ष 2016-17 में तैयार किये गए रिपोर्ट को उत्तराखंड विधानसभा में सितम्बर 2018 में रखा गया. इस रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया था कि ओडीफ हो जाने का राज्य सरकार का दावा गलत है. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि स्वच्छ भारत अभियान के तहत राज्य में कुल 546 सामुदायिक शौचालय बनने थे और बने हैं महज 63. फिर भी राज्य सरकार ने दावा कर दिया है कि अब कोई बाहर शौच करने नहीं जाता.
इसी तरह, कुल 4,485 ठोस एवं तरल कचड़ा प्रबंधन निकाय बनने थे पर राज्य ने महज 50 ही बनाया.
तो सवाल उठता है कि मोदी सरकार और इस पार्टी के शासित राज्यों को अपनी अधूरी सफलता की कहने की इतनी हड़बड़ी क्यों हैं?