उमंग कुमार/
‘बहुत हुआ रोज़गार का इंतज़ार, अबकी बार मोदी सरकार’, यह नारा तो याद ही होगा आपको. नरेन्द्र मोदी 2014 में जब देश के प्रधानमंत्री बनने की लड़ाई लड़ रहे थे तब उन्होंने बेरोजगारी का मुद्दा उठाया था और यह नारा युवाओं के लिए एक उम्मीद की तरह आया था. लेकिन एक वाजिब सवाल है कि उन दिनों नरेन्द्र मोदी को कैसे पता चला था कि देश में बेरोजगारी है!
यह मूलतः राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण (NSSO) से आया आंकड़ा था जिसने कहा था कि देश में बेरोजगारी बहुत ज्यादा है और मोदी ने उसे चुनावी मुद्दा बना दिया था. अब वही संस्थान फिर से एक सर्वेक्षण लेकर आया है जिसमें कहा गया है कि वर्तमान में बेरोजगारी पिछले 45 साल का रिकॉर्ड तोड़ रही है और मोदी सरकार ने इस रिपोर्ट को मानने से इनकार कर दिया है. यहाँ तक कि उस संस्था के दो शीर्ष अधिकारियों को इस विरोध में इस्तीफ़ा देना पड़ गया है.
खैर, सरकार जिस संस्था के सर्वेक्षण का आंकड़ा छिपा रही है आइये जानते हैं कि यह कब से है और क्या काम करती रही है! यह भी कि यह कितना विश्वसनीय है!
इनसाइक्लोपीडिया.कॉम के अनुसार, राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संसथान (एनएसएसओ) द्वारा किया गया सर्वेक्षण विश्व के उन गिने-चुने पुराने सर्वेक्षणों में शुमार है जो लागातार घर के स्तर तक जाकर देश के परिवारों का हाल बताता है. खासकर विकासशील देशों में. सन् 1972 से यह संस्था सांख्यिकी मंत्रालय के अन्दर काम कर रही है.
आंकड़ों को और विश्वसनीय बनाने के उद्देश्य से अब 14,000 गाँव और शहरी क्षेत्रों में सर्वेक्षण किया जाता है. यह शुरुआत के 1,833 गाँवों से काफी अधिक है
इस संस्था का महत्व समझना है तो पहले भारतीय परिदृश्य को समझना होगा. जब देश को आज़ादी मिली, तब देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी गरीबी और भूखमरी हटाना, कृषि उतापदन बढ़ाना. इस लक्ष्य को पाने के लिए सरकार को दूरगामी नीतियां बनानी थी पर समस्या की विस्तृत समझ किसी के पास नहीं थी. क्योंकि कोई व्यवस्थित आंकड़ा ही नहीं था जिससे देश की स्थिति का सही आंकलन किया जा सके.
इसी समस्या से निपटने के लिए भारत सरकार ने राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण की शुरुआत की. ताकि परिवार की सरंचना, उनकी आय और जरुरत इत्यादि का सही आंकलन किया जा सके. इसके तहत पहला सर्वेक्षण 1950-51 में किया गया जिसमें भूमि के इस्तेमाल, रोजमर्रा के जरुरत की चीजों का मूल्य और मिल रहे मजदूरी इत्यादि का आंकड़ा एकत्रित किया गया. पहले चरण के इस सर्वेक्षण में इस संस्था ने 1,833 गाँवों के आंकड़े एकत्रित किये. यह हिंदी प्रतिदर्श सर्वेक्षण कहा जाता है. उस समय देश में गाँवों की कुल गाँव की संख्या 5,60,000 थी.
तब से अबतक साठ से अधिक राष्ट्रीय स्तर के सर्वेक्षण किये जा चुके हैं. अलबत्ता शुरूआती दौर के सर्वेक्षण से अब तक काफी परिवर्तन आ चुका है. आंकड़ों को और विश्वसनीय बनाने के उद्देश्य से अब 14,000 गाँव और शहरी क्षेत्रों में सर्वेक्षण किया जाता है. यह शुरुआत के 1,833 गाँवों से काफी अधिक है.
यह संस्था न केवल खपत और रोजगार पर सर्वेक्षण करती है बल्कि स्वास्थय, शिक्षा, पक्के घरों की उपलब्धतता, शौचालय, कर्ज इत्यादि भी इस सर्वेक्षण का विषयवस्तु रहा है.
सन् 1998 तक इस संस्था के आंकड़े सार्वजनिक नहीं किये जाते थे. पर तत्कालीन सरकार ने आदेश दिए कि 1983 से सारे आंकड़े सार्वजनिक किये जाएँ. इसका फायदा यह हुआ कि शोधकर्ताओं, सामाजिक कार्यकर्ता और अन्य लोग जिन्हें देश की वर्तमान स्थिति में जरा भी रूचि थी वे इस संस्था के आंकड़ो का इस्तेमाल करने लगे.
वर्तमान तक देश की नीतियों में इस संस्था के द्वारा दिए गए आंकड़े अहम् भूमिका अदा करते रहे. यह पहली बार हुआ है जब सरकार ने कह दिया है कि वह इस संस्था के आंकड़े को वेरीफाई करेगी तब जाकर यह लोगों के सामने आएगा.