अनिमेष नाथ/
वाह मोदीजी वाह! एक तरफ देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण संरक्षक के नाम से सम्मानित किया जाता है और दूसरी तरफ 111 दिन तक लागातार भूख हड़ताल पर बैठे पर्यावरण सरंक्षक की मौत हो जाती है. यह तब है जब कि जीडी अग्रवाल उर्फ़ संत स्वामी ज्ञान स्वरुप सानंद की मांग भी कुल वही थी जो नरेन्द्र मोदी ने चुनाव में वादे किये थे. मरने वाले प्रोफेसर जीडी अग्रवाल इस मामले में प्रधानमंत्री को तीन बार ख़त लिख चुके थे.
यह सब घटनाएं प्रधानमंत्री की एक और तस्वीर पेश करती है.
प्रोफेसर जीडी अग्रवाल 22 जून से ही स्वच्छ गंगा की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर थे. बृहस्पतिवार को दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गई..
कुछ दिनों पहले ही उन्होंने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय, जल संसाधन मंत्रालय तथा प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिखा था. परन्तु कहीं से भी जवाब न मिलने से निराश जीडी अग्रवाल ने अपनी भूख हड़ताल को जारी रखते हुए बीते बुधवार से पानी पीना भी बन्द कर दिया था.
उन्होंने सरकार से गंगा किनारे चल रहे हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट के निर्माण को रोकने की मांग रखी थी तथा सरकार से यह भी मांग की थी कि सरकार गंगा को बचाने हेतु कुछ कठिन कदम उठाये जाएँ, ताकि नदी को आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित किया जा सके.
डॉ अग्रवाल, आईआईटी कानपुर में संकाय सदस्य (प्रोफेसर) के रूप में कार्यरत रहे और उन्होंने केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में सचिव के रूप में भी अपना योगदान दिया. उन्होंने ने पर्यावरण के क्षेत्र में अपने अभूतपूर्व योगदान से कईयों को प्रोत्साहित किया.
वे पिछले 40 वर्षों से गंगा के निरंतर प्रवाह की लड़ाई लड़ रहे थे, वे केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पहले सचिव थे. उनकी मांगो को ध्यान में रखते हुए पिछली सरकारों (यूपीए भी शामिल) ने गंगा के किनारे किसी भी नए प्रोजेक्ट के निर्माण पर रोक लगा दी थी. परन्तु वर्तमान सरकार से उन्हें सिर्फ निराशा ही हाथ लगी.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अब दिवंगत अग्रवाल ने तीन बार पत्र लिखकर संपर्क करना चाहा लेकिन उन्हें सिर्फ असफलता हाथ लगी
‘नमामि गंगे’ के निदेशक आरआर मिश्रा ने उनसे मुलाकात तो की, परन्तु कोई ठोस कदम उठाने में वे नाकामयाब रहे.
अग्रवाल की मौत का प्रमुख कारण, गंगा में प्रदूषण को लेकर सरकार की अनदेखी को माना जा रहा है. हिमालय के पहाड़ों से निकलकर बंगाल की खाड़ी तक जाने वाली गंगा नदी को स्वच्छ रखने में वर्तमान सरकार पूरी तरह से नाकामयाब रही है.
मोदी से संपर्क साधने के प्रयास रहे असफल
नरेन्द्र मोदी ने 2014 के चुनाव प्रचार में वाराणसी से चुनाव लड़ते हुए बार-बार कहा कि उनको गंगा मईया ने बुलाया है और वो गंगा की सेवा करने के लिए आये हैं. यही नहीं जब अग्रवाल, मनमोहन सिंह सरकार के समय भूख हड़ताल पर बैठे थे तो मोदी ने ट्वीट कर उनका समर्थन भी किया था.
उसी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अब दिवंगत अग्रवाल ने तीन बार पत्र लिखकर संपर्क करना चाहा लेकिन उन्हें सिर्फ असफलता हाथ लगी.
अपने तीसरे पत्र में इन्होने लिखा कि मुझे उम्मीद थी कि आप मनमोहन सिंह सरकार से दो कदम आगे जायेंगे और गंगाजी की रक्षा के लिए प्रयास करेंगे. ऐसा इसलिए क्योंकि मोदी ने गंगा के नाम पर अलग मंत्रालय तक बनाया था. लेकिन आपके पिछले चार साल के प्रयास का फायदा गंगा जी को नहीं बल्कि कॉर्पोरेट सेक्टर को मिला.
अग्रवाल ने एक बार एक पत्रिका से बात करते हुए कहा था, “शुरू में तो हमें लगा कि यह (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी) सही आदमी है, जब उन्होंने कहा कि मुझे मां गंगा ने बुलाया है, मां गंगा के लिए काम करना है. इसके बाद सत्ता में आते ही गंगा के लिए इन्होंने अलग मंत्रालय बनाया और “रिजुवनेशन” शब्द का इस्तेमाल किया. इसका मतलब नवीनीकरण नहीं होता है. इसका अर्थ होता है पुरानी स्थिति को बहाल करना. लेकिन उसके बाद से अब तक कोई काम हुआ नहीं. आज चार होने को आए, पर कुछ काम नहीं हुआ. मुझे तो लगता है कि सरकार नई गंगा बनाने पर तुली हुई है. जैसे वे “नया भारत” तो कहते ही हैं. लेकिन मैं यह कहना चाहूंगा कि मैं “नए भारत” में भी नहीं रहना चाहूंगा, लेकिन कम से कम मैं गंगा को नई गंगा बनते हुए नहीं देख सकता. वास्तव में यह सरकार पूरी तरह से धोखा दे रही है और विशेष रूप से मोदी जी धोखा दे रहे हैं.
अपने तीसरे पत्र में अग्रवाल ने तो यहाँ तक लिख दिया कि अब इस बात का एहसास है कि मोदी पर उनके ख़त का कोई असर नहीं होगा.
अब यह गंगा प्रेमियों पर निर्भर करता है कि गंगा के इस वास्तविक लाल का त्याग बर्बाद होने देंगे या गंगा को बचायेंगे.