सौतुक डेस्क/
भारतीय हर क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाते हैं, वो भले वर्चुअल संसार ही क्यों न हो. वैसे आधार पर चल रही बातचीत पर लगभग सभी पढ़े लिखे भारतीय ने निजता को सर्वोपरि माना पर जब अपने अकाउंट की बात आती है तो उनको निजता से अधिक अपने साथी का विश्वास जीतना सही लगता है.
जी हाँ, 89 फीसदी भारतीयों का मानना है कि रिश्ते में निजता जरूरी चीज है, लेकिन 84 फीसदी लोग अपने साथी से अपना पासवर्ड और पिन नंबर साझा करते हैं. ऑनलाइन दुनिया में सुरक्षा की बात करने वाली कम्पनियाँ इसे चाहे जैसे ले लेकिन भारतीय लोगों को अपने साथियों पर भरोसा दिखाना भी यहाँ काबिलेगौर है. एक तरफ भारतीय अपने साथी के साथ पासवर्ड साझा करते हैं और दूसरी तरफ मोबाईल उनके जीवन को प्रभावित करना शुरू कर दिया है. निजी समयों में मोबाईल इस्तेमाल से लोगों के बीच तनाव दिखने लगा है.
मैकेफे द्वारा किए गए एक अध्ययन से मंगलवार को यह जानकारी मिली है, जिसमें निजी जानकारी साझा करते हुए सर्तकता बरतने का आह्वान किया गया है. अध्ययन के मुताबिक, 77 फीसदी भारतीयों का मानना है कि प्रौद्योगिकी का प्रयोग उनके रिश्तों का हिस्सा है, जबकि 67 फीसदी का मानना है कि उनका साथी उनसे ज्यादा इंटरनेट से जुड़े डिवाइसों में रुचि लेता/लेती है.
सात फीसदी भारतीयों का मानना है कि प्रौद्योगिकी का प्रयोग उनके रिश्तों का हिस्सा है
छः सौ लोगों पर हुए इस सर्वेक्षण में सतहत्तर प्रतिशत लोगों ने यह भी माना कि मोबाईल का उनके रिश्ते पर प्रभाव पड़ता है.
मुंबई, दिल्ली, बैंगलूरू में पिछले साल के नवम्बर महीने में हुए इस सर्वेक्षण में 89 फीसदी लोगों ने निजता को अहमियत दी पर 84 प्रतिशत लोगों ने माना कि वे अपने अकाउंट के पिन और पासवार्ड उन्होंने किसी न किसी से साझा किया, खासकर अपने निजी साथी से.
इस सर्वे में पता चला कि 60 प्रतिशत लोगों ने ऑनलाइन शोपिंग अकाउंट का ब्यौरा साथी के साथ साझा किया तो 41 प्रतिशत ने अपने निजी ईमेल का पासवर्ड भी साझा किया. करीब 38 प्रतिशत ने तो संवेदनशील अकाउंट जैसे बैंक इत्यादि के पासवर्ड भी साझा किये.
मैकेफी के प्रबंध निदेशक और उपाध्यक्ष (इंजीनियरिंग) वेंकट कृष्णापुर ने एक बयान में कहा, “आज की कनेक्टेड जीवनशैली में दैनिक गतिविधियां और ग्राहकों से साथ संपर्क प्रौद्योगिकी और एप्स के माध्यम से होता है. प्रौद्योगिकी पर हमारी इस निर्भरता के कारण हमें अनजान के साथ अपनी निजी जानकारियों को साझा करना है. इसलिए हमें जरूरत से ज्यादा जानकारियां साझा करने से सतर्क रहना चाहिए और सुधारात्मक उपाय करना चाहिए.”
81 प्रतिशत लोगों ने माना कि मोबाईल पर अधिक समय देने से जीवनसाथी से बकझक हो चुकी है
इनमें से 81 प्रतिशत लोगों ने माना कि मोबाईल पर अधिक समय देने से जीवनसाथी से बकझक हो चुकी है.
जब मोबाईल के साथ समय गुजारने से सम्बंधित नियम की बात हुई तो कम से कम 20 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्होंने एक समय सीमा निर्धारित कर रखी है, खासकर जब जीवनसाथी साथ में होता है.
इसमें एक और मजेदार बात यह निकल कर आई कि करीब 45 प्रतिशत लोगों ने माना कि उन्होंने अपने साथी के सोशल मीडिया अकाउंट में जाकर जासूसी की है.
इस रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि चार भारतीय में से तीन (75 फीसदी) को अपने साथी का ध्यान प्राप्त करने के लिए उनकी डिवाइस के साथ प्रतिद्वंदिता करनी पड़ी. आधे से ज्यादा वयस्कों (21 से 40 साल के बीच) ने बताया कि ऐसा एक से ज्यादा बार हो चुका है.
इसके बाद, 81 फीसदी भारतीयों का कहना था कि उन्हें अपने दोस्त, परिवार के सदस्य या उनके जीवन के महत्वपूर्ण व्यक्ति के साथ इस बात को लेकर बहस करनी पड़ी कि वह जब साथ होते हैं तो उनका साथी अपने फोन पर ज्यादा ध्यान देता/देती है.
आईएएनएस से इनपुट के साथ