सौतुक डेस्क/
आप ऐसे ऑफिस में काम करते हैं जहां दो दिन का वीकेंड होता है और फिर भी आपको लगता है कि परिवार के साथ समय गुजारने का मौका नहीं मिलता. आपको इच्छा होती है कि थोड़ी और छुट्टी मिले. यह बात अगर आप अपने ऑफिस में कह दें तो आपका बॉस कहेगा कि आपको काम करने में मन नहीं लगता.
लेकिन अपने बॉस के कहने पर आप यह मत मान लीजिये कि आप वाकई गलत हैं. आपको एक दिन कि और छुट्टी मिलनी ही चाहिए. यानि कि वीकेंड दो नहीं तीन दिन का होना चाहिए.
नीदरलैंड, जर्मनी, आइसलैंड और डेनमार्क भी कुछ ऐसे देश है जहाँ काम के घंटे बहुत कम होते हैं लेकिन उनकी प्रोडक्टिविटी अन्य देशों जहाँ लोग ज़्यादा घंटे काम करते हैं, से अधिक है.
बड़ी कम्पनियाँ जैसे अमेज़न, गूगल और डेलॉइट जापान और अमेरिका जैसे कई देशों में चार-दिवसीय कार्य सप्ताह के प्रयोग कर चुके हैं.
दावोस में दो विशेषज्ञों ने सुझाया है कि अगर सप्ताह में महज़ चार दिन काम के हों और तीन दिन छुट्टी के, तो न केवल कर्मचारियों को फायदा होगा बल्कि जिस संस्था में वह कर्मचारी काम करता है उसको भी फायदा होगा.
The four-day working week might be closer than you think. Psychologist Adam Grant (@adammgrant) and author Rutger Bregman (@rcbregman) explain the benefits of working less. @wharton #wef19 pic.twitter.com/R6f0L8HHYs
— World Economic Forum (@wef) January 24, 2019
हाल ही में, न्यूजीलैंड की एक कंपनी ने चार-दिवसीय सप्ताह का ट्रायल किया. यह ट्रायल इतना सफल रहा कि उसके मालिक अब इसे स्थायी बनाना चाहते हैं। यह कंपनी, वसीयत और ट्रस्ट फंड से संबंधित कार्य करती है. इस साल की शुरुआत में यहाँ आठ सप्ताह तक यह प्रयोग किया गया। इस कंपनी ने देशभर के अपने 16 कार्यालयों में 240 कर्मचारियों को तीन दिनों का सप्ताहांत देकर पूर्ण वेतन भी दिया। कंपनी का मानना है कि इस कदम से कर्मचारियों में, अधिक उर्जा और संतुष्टि के साथ कार्यस्थल पर बेहतर माहौल देखने को मिला.
व्हार्टन स्कूल ऑफ़ पेनिसिल्वेनिया के एडम ग्रांट नाम के एक मनोवैज्ञानिक ने कहा था कि कुछ ऐसे अध्ययन हुए हैं जिससे स्पष्ट होता है कि अगर कर्मचारियों के कार्य करने के घंटे में कमी कर दी जाए तो लोग अधिक ध्यान से अपना काम करते हैं. यही नहीं, उनके द्वारा किये गए काम में भी कोई कमी नहीं आती है और वे अपनी जिम्मेदारी का बेहतर तरीके से निर्वहन करते हैं. वे कर्मचारी अपने संस्था के प्रति अधिक वफादार रहते हैं क्योंकि उनको लगता है कि उस संस्था ने उनके और उनके परिवार को अधिक तरजीह दी है.
लेकिन यह कोई नया विचार नहीं है. अर्थशास्त्री रूटगर बर्गमैन का कहना है कि सन् 1970 के पहले बहुत सारे ऐसे दार्शनिक, अर्थशास्त्री और समाजशास्त्री हुए जिन्होंने इस मुद्दे पर गहन विचार किया था. बीसवीं सदी में कई सरकारों ने भी इस मुद्दे पर विचार किया कि कैसे लोगों को अधिक समय उपलब्ध कराया जाए ताकि वो अपने परिवार के साथ थोड़ा समय गुजार सकें.बर्गमैन ने एक पुस्तक लिखी है यूटोपिया फॉर रियलिस्ट.
साल 1920 -1930 में एक उद्योगपति हुए जिनका नाम था हेनरी फोर्ड. उन्होंने भी इस बारे में पता लगाया कि अगर कर्मचारियों को कुछ अधिक समय दिया जाए तो कर्मचारी की कार्यकुशलता बढ़ती है. इसलिए उन्होंने सप्ताह में कार्य करने के घंटे को 60 से 40 कर दिया. इनका तर्क था कि कम घंटे काम करने से कर्मचारी को उतनी थकान नहीं होती और वह कार्यस्थल पर अधिक सचेत और उर्जावान बना रहता है.
ऐसे अब ढेरों अध्ययन आने लगे हैं जो कर्मचारियों के चालीस घंटे से भी कम काम करने की पैरवी करते हैं. इन संस्थाओं का मानना है कि अगर एक कर्मचारी पांच दिन के बजाय चार दिन ही कार्यालय जाए तो भी उसका कार्य उतना ही रहेगा जितना पांच दिन करने पर होता है.