अनिमेष नाथ/
भारत की आबादी का सबसे बड़ा प्रतिशत युवा है और अगर इन युवाओं पर आज खर्च किया गया तो भविष्य में देश को इसका फायदा मिल सकता है. लेकिन यह देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि सरकारें मूर्तियों पर हज़ारों करोड़ खर्च करने को तैयार हैं पर उच्च शिक्षा से लागातार बजट की कटौती की जा रही है.
शिक्षा पर काम करने वाली वेबसाइट करियर 360 के मालिक पेरी महेश्वर अपने फेसबुक पेज पर, सरकार के हालिया कुछ निर्णयों का ब्यौरा दिया जिसमें सरकार ने उच्च शिक्षा से बजट कटौती की है. जैसे, जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के पुस्तकालय का बजट 80 प्रतिशत घटा दिया गया. पहले यह बजट आठ करोड़ रुपये था और अब इसे घटाकर 1.7 करोड़ रुपये कर दिया गया है. सरकार ने नए निर्माणाधीन आईआईएम के अतिरिक्त निर्माण को लेकर सारी धनराशियों को रोक दिया है तथा संस्थानों को निर्देश दिया है कि वह निर्माण के लिए बैंकों से स्वयं ऋण ले सकते हैं.
सरकार ने प्रोजेक्ट विश्वजीत के तहत आईआईटी के निर्माण हेतु 8,700 करोड़ रुपये की राशि को मंज़ूर करने से मना कर दिया है. इसी तरह टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज भी सरकार के अनदेखी से परेशान है. वो लिखते हैं कि सरकार आईआईटी, मुम्बई के शिक्षकों को समय पर वेतन देने में विफल रही है और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने सामाजिक भेदभाव से निपटने के लिए चल रहे शोध केन्द्रों पर खर्च में कटौती की है.
यह वही सरकार है जिसने अभी-अभी 3 हज़ार करोड़ खर्च कर सरदार पटेल की मूर्ति बनवाई है और इसी के नक़्शे-कदम पर चलते हुए कई राज्यों ने इससे भी ऊँची मूर्ति बनाने का निर्णय लिया है. इनमें सबसे नई खबर राजस्थान से आई है जहाँ शिव की सबसे ऊँची मूर्ति बनाने की बात चल रही है. इसके पहले अयोध्या में राम की मूर्ति, महाराष्ट्र में शिवाजी की मूर्ति, कर्णाटक में कावेरी इत्यादि की खबरें चर्चा में बनी रहीं.
इसके पक्ष में बोलने वाले तर्क लेकर आयेंगे कि इसमें बुरा क्या है. बात सही भी है अगर सरकार के पास अत्यधिक पूंजी है तो ऐसा करने में हर्ज़ क्या है. लेकिन अगर जरुरी धन नहीं है तो यह तो सोचना होगा कि देश की प्राथमिकता क्या होनी चाहिए.
देश की जनसँख्या और युवाओं की संख्या देखकर जो सबसे जरुरी है वह है शिक्षा. खासकर उच्च शिक्षा.
हम जानते हैं कि उच्च शिक्षा और वैश्विक अर्थव्यवस्था कई तरीकों से जुडी हुई है. जनसँख्या के रूप से भारत की औसत आयु 28 वर्ष के एक युवा राष्ट्र जैसी है. भारत की आधी जनसंख्या 25 वर्ष से कम आयु की है. भारत की यह जनसंख्या यदि कुशल एवं शिक्षित होगी, तो वह भारतीय एवं वैश्विक अर्थव्यवस्था की माँगों को बेहतर तरीके से पूरा कर सकती हैं. यह भी जानना होगा कि किसी देश के पास ऐसा मौका बार-बार नहीं आता. एक बार बुजुर्गों की संख्या अधिक हो जायेगी तो शिक्षा से बजट कटौती कर स्वास्थ्य पर अधिक खर्च करना ही पड़ेगा और उसका भविष्य से कोई लेना-देना नहीं होगा. लेकिन अभी अगर इन युवाओं को शिक्षित किया गया तो इसका फायदा देश को भविष्य में दिखेगा.
खस्ताहाल उच्च शिक्षा व्यवस्था
लेकिन सरकार शायद इस पक्ष को समझ नहीं पा रही है. आंकड़े देखिये. नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, 2017 में विश्व भर में लगभग 26,000 विश्वविद्यालय थे. इनमें से अधिकांश संयुक्त राज्य अमेरिका एवं यूरोप में स्थित हैं. भारत में लगभग 819 विश्वविद्यालय हैं. वहीँ यदि तुलनात्मक रूप से देखा जाए तो चीन में लगभग 2,900 विश्वविद्यालय हैं.
यहाँ देखने वाली बात यह है कि भारत और चीन दोनों की आबादी लगभग समान हैं, फिर भी, भारत विश्वविद्यालयों की संख्या के मामले में चीन से बहुत बहुत पीछे है.
एक महत्त्वपूर्ण संकेतक, सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) इसकी सच्चाई बयान करता है.
अखिल भारतीय सर्वेक्षण द्वारा किये गए उच्च शिक्षा को लेकर नवीनतम अनुमान बताते हैं कि प्राथमिक शिक्षा का जीईआर 100 प्रतिशत है यानि सारे छोटे बच्चे विद्यालय में दाखिला लेते हैं. जबकि उच्च शिक्षा में जीईआर 25.8 प्रतिशत है. इससे पता चलता है कि हर 100 लोगों में से 25 लोग ही उच्च शिक्षा के लिए आगे आते हैं. यह आंकडे देश में प्रतिभाओं को सँवारने की हमारी अक्षमता को उजागर करता है.
हम न केवल विश्वविद्यालयों की संख्याओं के नज़रिए से ही पिछड़े हुए हैं, शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर भी काफी पीछे हैं. टाइम्स हायर एजुकेशन वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2018 में यह स्पष्ट रूप परिलक्षित होता है.
टाइम्स हायर एजुकेशन वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2018 द्वारा जारी की गयी रैंकिंग के अनुसार, कोई भी भारतीय शिक्षण संस्थान दुनिया के शीर्ष 100 संस्थानों में नहीं आता है. भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) बैंगलोर, और भारतीय प्रोद्यिगिकी संस्थान(आईआईटी) मुंबई, ही ऐसे दो संस्थान हैं जो विश्व के शीर्ष 500 संस्थानों के अंतर्गत आते हैं और ये संस्थान सही अर्थ में विश्वविद्यालय भी नहीं हैं, वे विज्ञान और प्रोद्यिगिकी संचालित संस्थान हैं.
यदि कोई देश, युवाओं पर निवेश नहीं करता है तो क्या वह देश अपने उज्ज्वल भविष्य का सपना देखने के लिए अधिकृत है? क्या उसके सपने पूरे हो सकेंगे!