शशिभूषण/
सुप्रसिद्ध कहानीकार गोविंद मिश्र की कहानी ‘फाँस’ लोक जीवन की अद्वितीय मार्मिक कथा है। इसमें लोककथा सी रोचकता और बेधकता है।
‘फाँस’ पढ़ने के बाद रह-रहकर हांट करने वाली कहानी है। यह छद्म और ठगी पर एक ग्रामीण स्त्री के यक़ीन और बंधुत्व के जीत की कहानी है। ‘फाँस’ हिंदी की गिनी-चुनी अविस्मरणीय क़िस्सागोई से भरपूर पठनीय कहानियों में शुमार होने लायक कहानी है।
इस कहानी में उत्सुकता, रोमांच और अंत में द्रवित, नम आँख कर देने की खूबियाँ कूट-कूटकर भरी हैं। संवादों में जीवन और मानवीयता के मर्मभेदी लोक स्वर हैं। कहानी लंबाई में भी ऐसी है कि एक बैठक में एक साँस में पढ़ी जा सके। ‘फाँस’ प्रथम दृष्टया रोचक, मार्मिक और हृदय में गहरे तक प्रभाव छोड़ने वाली है। लेकिन अपने निहितार्थ में विचार प्रधान है। यह ठगी के ऊपर एक भोली स्त्री की मनुष्यता के विजय की कहानी है।
रात के पहले पहर का वक़्त है। ठंड के दिन। घर में पलटू की माँ है। पलटू गोद का बच्चा है। दो युवा ठग-चोर हैं। अनुपस्थित पलटू का पिता है। चोर -ठग दरवाज़ा खटखटाते हैं। पलटू की मां परिचय पूछती है। वह सतर्क है। अजनबियों को भीतर आने देने से पहले पूछताछ करती है- कौन हैं ? पहले कभी नहीं देखा। चोर चालाकी से बताते हैं -हमें पलटू के पिता ने भेजा है। कुछ ज़रूरी बात करनी है। वे एक काम निबटा कर हमारे पीछे-पीछे आएंगे। तब तक हम बैठेंगे। बातचीत करके चले जायेंगे।
स्त्री दोनों ठगों को भीतर आने देती है। आँगन में चारपाई पर बिठाती है। ठगों की योजना है कि पलटू की मां को पहले बात में उलझायेंगे
स्त्री दोनों ठगों को भीतर आने देती है। आँगन में चारपाई पर बिठाती है। ठगों की योजना है कि पलटू की मां को पहले बात में उलझायेंगे। फिर उसे सख्ती से बांध देंगे। उसके बाद माल चुराकर भाग जाएंगे। सब योजना के अनुसार होता है। स्त्री खाना बनाने रसोई में जाती है। दोनों में से एक ठग फुर्ती एवं सावधानी से बाहर का दरवाज़ा बंद कर देता है। दबे पाँव कुठरिया में घुस जाता है। दूसरा पलटू की मां को जिज्जी कहता बातों में उलझाए रखता है।
लेकिन जैसे-जैसे वह बात करता जाता है स्त्री के यक़ीन और मानव सुलभ भ्रातृत्व प्रेम में गहरे उतरता जाता है। वह सोचता है कि काम जल्दी खत्म हो। उसकी मुश्किल बढ़ती जा रही है। वह कमज़ोर पड़ रहा है। स्त्री बड़ी सरल है। चोर, स्त्री को रस्सी से बांध नहीं पाता। उल्टे स्त्री का बच्चा पलटू उसे मामा कहता है। दूसरा चोर कुठरिया में सब सुन रहा है। वह सुनता है- स्त्री खाना बनाकर आँगन में आई। उसने पूछा – दूसरे भैया नहीं दिख रहे ? आँगन में बैठा चोर बताता है- वे सुरती लेने बाहर निकल गये। स्त्री उसके लिए तम्बाकू ढूंढने लगती है। सुरती घर में है बाहर लेने क्यों गए ? स्त्री को पछतावा होता है कि मेहमान भाई को सुरती लेने बाहर जाना पड़ा। कुठरिया में घुसा ठग हारकर बाहर आ जाता है। उसने सब बातें सुनी हैं। वह ऐसे निश्छल घर में चोरी नहीं कर सकता जहां डर संशय तो दूर उल्टे चोर को अनजाने में भाई जैसा अपनत्व मिला। वह भी आँगन में आकर गोरसी में आग तापने लगता है।
पलटू की मां और चोरों के बीच के संवादों और देश काल के चित्रण में प्रयोग की गई बुंदेली बोली और उसके शब्दों की मिठास कहानी को खास आंचलिक पुट देते हैं । कहानी में एक ग्रामीण स्त्री की निश्छलता, भोलेपन अपनेपन और भरोसे जैसे नैतिक मूल्यों के माध्यम से जग्गू और उसके साथी चोर के हृदय परिवर्तन को बेहद सहज और स्वतःस्फूर्त घटनाओं के माध्यम से दिखाया गया है।
दोनो ठग अंत में लौट जाने का फैसला करते हैं। वे पलटू की मां से गहरे प्रभावित हैं। पलटू की मां उन्हें रोकती है- पलटू के पिता आते ही होंगे। ठग कोई रिस्क नहीं लेना चाहते। एक आगे बढ़ता है। पलटू की माँ को जिज्जी संबोधित करता पलटू के लिये पाँच रुपये देता है। स्त्री उन्हें देखती है। दोनों चोर तेज़ी से घर के बाहर निकल जाते हैं।
ठग-चोरी के लिए मनुष्य का यक़ीन ही अनुकूल अवसर बनता है। लेकिन कहानी ‘फाँस’ में स्त्री का यक़ीन ठगों को बंधु बना लेता है। जो प्रेम चोरों के लिए फाँस है वही स्त्री का सुरक्षा कवच बन जाता है। कहानी ‘फाँस’ चोरी-ठगी पर इंसानी प्रेम और बंधुत्व के विजय की सहज कहानी है। इसे पढ़ने के बाद भूलना किसी के लिए भी असम्भव ही रहेगा। कहानी में कथाकार गोविंद मिश्र की कहानी कला अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँचती है।
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(वनमाली सृजनपीठ द्वारा संपादित विशाल हिंदी कहानी संग्रह ‘कथादेश’ में प्रकाशित टिपण्णी )
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फटा पैंट और एक दिन का प्रेम’ फेम शशिभूषण बेहतरीन कथाकार हैं। विराट जीवन की संभावनाओं के बीच एक किसी नुक्ते पर फँसा मनुष्य इनकी कहानियों में गरिमापूर्ण ढंग से वर्णित होता है। ये दूरदर्शी आलोचक हैं। सोशल मीडिया को जो कुछ लोग अपनी सामयिक और तीक्ष्ण टिपण्णी(यों) से मौजूँ बनाये रखते हैं, शशिभूषण उनमें से एक हैं। केंद्रीय विद्यालय, शाजापुर में बतौर स्नातकोत्तर शिक्षक कार्यरत शशिभूषण अपने स्वभाव से ही शिक्षक हैं।