जितेन्द्र कुमार/
जितेन्द्र कुमार स्वतंत्र लेखन करते हैं. बिहार के भोजपुर जिले में जन्मे कुमार अब तक दो कविता संग्रह और दो कहानी संग्रह ,एक हिंदी और एक भोजपुरी में लिख चुके हैं. इसके साथ ही आपका एक और महत्वपूर्ण कार्य है है वह है आरा के ऐतिहासिक तथ्यों, चित्रों पर जमे मिथकों की धूल को झाड़ना.
धरमन और करमन उन्नीसवीं सदी के पाँचवे-छठे दशक की आरा शहर की मशहूर तवायफ़ें थीं।बेहद ख़ूबसूरत और ज़हीन।दोनों मनमोहक नृत्यांगनाएँ थीं।उनके मुज़रे सुनने रईस और ज़मींदार उनकी नृत्यशालाओं में जाते थे।अब धरमन बाई की नृत्यशाला कला की परित्यक्त इबारत है। आज सुबह मेरी इच्छा कला की इस ऐतिहासिक इबारत को देखने की हुई।यह आरा जिला स्कूल के परिसर में वर्त्तमान जिला स्कूल भवन के पिछवाड़े स्थित है।मैं परिसर के गेट के पास पहुँचता हूँ।धरमन बाई के एक गीत की ध्वनि मेरे कानों में गुँजने लगती है—–
जो मैं होती राजा, वन की कोइलिया,
कुहुँक रहतीं राजा, तेरे बंगले पर
कुहुँक रहती राजा…….
जो मैं होती राजा, कारी बदरिया,
बरिस रहतीं राजा, तेरे बंगले पर
बरिस रहती राजा………
जो मैं होती राजा, बेली चमेलिया
खिलीये रहतीं राजा, तेरे बंगले पर
खिलीये रहतीं राजा……….
कुछ देर मैं इस गीत की ध्वनि में खो गया।हालाँकि यह मेरे मन का भ्रम था।याद आया की मैं धरमन बाई की नृत्यशाला देखने आया हूँ।परिसर में बिहार गृह रक्षा वाहिनी के कुछ जवान नजर आ रहे थे।एक जवान गेट के पास आकर पूछा कि क्या चाहते हैं?मैंने अपना परिचय दिया और कहा कि मैं धरमन बाई की नृत्यशाला देखना चाहता हूँ।रक्षा वाहिनी का जवान मुझे अंदर प्रवेश दे देता है।इंचार्ज ने एक कुर्सी मँगवाई।इंचार्ज की बोली के उतार चढ़ाव से मैं समझ जाता हूँ कि वे समस्तीपुर के निवासी हैं।वे मेरे अनुमान की तसदीक करते हैं।
मैं उनको वीर कुँवर सिंह और धरमन बाई के बारे में बताता हूँ।नृत्यशाला को मैं चारों तरफ से घूम घूम कर देखता हूँ।इसकी जर्जर स्थिति देखकर मेरा मन बहुत दुखी होता है।इमारत का खंडहर इतना बुलंद है तब जब यह अपने शबाब पर होगी तो सौंदर्य की कैसी छटा बिखेरती होगी।जब पाँवों में घुँघरू बजते होंगे जब सुरीले कंठ से मुजरा गाते-गाते धरमन सामंत रईसों के सामने अभिवादन में झुक जाती होगी और राईस समझ नहीं पाते होंगे कि शीघ्र ही ब्रिटिश साम्राज्यशाही उन्हें पाँवों में झुकाने के लिए विवश करने वाली है।
काश!वे समझे होते! वीर कुँवर सिंह की शहादत, उनका शौर्य और संघर्ष उनके व्यक्तित्व के अन्य मानवीय पक्षों को दबा देता है।भोजपुर की लोकचेतना में यह बात बसी है कि धरमन बाई के साथ वीर कुँवर सिंंह के गाढ़े प्रेम संबंध थे।धरमन उनसे सच्चे दिल से प्रेम करती थी।जब वीर कुँवर सिंह ब्रिटिश इस्ट इंडिया कंपनी की फौज से स्वतंत्रता के लिए लड़ने लगे तब धरमन ने उनका साथ दिया और उनके पहले अँग्रेजों से लड़ते हुए काल्पी में शहीद हो गई।
वीर कुँवर सिंह प्रेम, सौंदर्य और शौर्य के अद् भुत संगम थे। वे संगीत, नृत्य और कला के प्रेमी थे। जो एक स्त्री को प्रेम नहीं कर सकता वह अपनी मातृभूमि को क्या प्यार करेगा?जो अपने गाँव को प्यार नहीं कर सकता, वह अपने देश को क्या प्रेम करेगा?कृष्ण ने राधा को प्यार किया था।अर्जुन ने सुभद्रा को, राँझा ने हीर को, भीम ने हिडिम्बा को, सलीम ने अनारकली को, शाहजहाँ ने मुमताज को, पृथ्वीराज चौहान ने संयोगिता गाहड़वाल को प्यार किया था।जिसने प्रेम नहीं किया वह युद्ध क्या करेगा?याद आ रहा है कि संयोगिता गाहड़वाल को अपहरण करने के पूर्व पृथ्वीराज की बारह विवाहित रानियाँ थीं–जम्भावती पडिहारी, पंवारी इच्छावती, दाहिया जालंधरी, गूजरी, बड़गूजरी, यादवी पद्मावती, यादवी शशिव्रता, कछवाही, पुंडीरानी, शशिव्रता, इन्द्रावती।संयोगिता से प्रेम विवाह था।पृथ्वीराज ने मोहम्मद गोरी से जीवनांत लड़ाई लड़ी।प्रेम करने से किसी के शौर्य में कमी नहीं आती।महात्मा कब युद्ध करते हैं?
जगदीशपुर के राजा कुँवर सिंह ने आरा में धरमन की कला से खुश होकर तोहफे के रूप में विशाल और भव्य नृत्यशाला का निर्माण करा दिया।यह इमारत उत्तर-दक्षिण लंबा है।पहली मंजिल की छत लगभग सोलह फीट ऊँची है।पूरब और पश्चिम दोनों ओर चौड़े-ऊँचे बरामदे हैं।जो गोल–गोल पायों पर टिके हैं पूरब बरामदे में बीच में लोहे की सीढ़ी थी जो ध्वस्त हो चुकी है, लोहे के ऐंगुलर बिम्ब बचे हैं।जो तीस डिग्री पर झुके हैं।ध्वस्त सीढ़ी से ऊपरी छत पर जाना संभव नहीं है।नीचले तल में अनेक छोटी छोटी कोठरियाँ हैं जो एक दूसरे से दरवाजों द्वारा कनेक्टेड हैं।इमारत की छत पर पाकड़-पीपल के पेंड़ जम गये हैं।संभव है ऊपरी तल पर विशाल कक्ष हो जिसमें धरमन बाई शागिर्दों के साथ सामंतों केमनोरंजन के लिए महफिल में मुजरा सुनाती हो।
धरमन और करमन दोनों धार्मिक प्रवृत्ति की थीं।दोनों ने अपने नाम पर अलग-अलग मस्जिदें बनवाईं।दोनों आरा में काफी लोकप्रिय थीं।धरमन के नाम पर आरा में धरमन चौक है और करमन के नाम पर करमन टोला मोहल्ला ही है। उम्मीद है कि धरमन की नृत्यशाला 1857के बहुत पहले बनी होगी यानी यह लगभग पौने दो सौ वर्ष पुरानी इमारत है।इसे गलने और ढहने के लिए छोड़ दिया गया। अगर कला का सौंदर्य देखकर किसी का ह्रदय पुष्प फूल की भाँति खिलता नहीं है तो उसे किसी चिकित्सक से अपना ह्रदय चेक करा लेना चाहिए कि उनका ह्रदय पथरीला तो नहीं होता जा रहा है!
युद्ध के मैदान में शौर्य का प्रदर्शन वही कर सकता है जिसने वीर कुँवर सिंह की तरह किसी को दिल से प्रेम किया हो।
एक बार फिर धरमन की कंठ ध्वनि सुनाई पड़ रही है—-
जो मैं होती राजा, वन के कोइलिया,
कुहुँक रहतीं राजा तेरे बंगले पर
जो मैं होती राजा…….
जो मैं होती राजा, कारी बदरिया,
बरिस रहतीं राजा, तेरे बंगले पर
……..
फर्जी राष्टवाद वाला आदमी दिन बदिन इस देश में बर्ता जाता हैं।