रजनीश जे जैन/

बीता समय अपने आप में एक दस्तावेज होता है। स्मृतियों का दस्तावेज। गुजरे समय को खंडों में बाँट देने से उसके पुनरावलोकन में आसानी हो जाती है। संदर्भों की मदद से ही सिलसिलेवार इतिहास दर्ज होता है। भारतीय सिनेमा में हरेक गुजरते बरस में महिलाओं की सहभागिता की दशा और दिशा के विकास का लेखा जोखा तैयार करने की परंपरा रही है। क्योंकि महत्वपूर्ण होने के बावजूद भी उनके साथ दोयम व्यवहार होता रहा है।
किसी भी ठेठ बॉलीवुड फिल्म को उठाकर देख लीजिये उनकी नायिकाएं सजावटी सामान से ज्यादा महत्व नहीं हासिल कर पाती। इस वर्ष की घोर सफल ‘टोटल धमाल’, ‘हॉउसफुल 4′, पागलपंथी की नायिकाओ के हिस्से में उल्लेखनीय कुछ भी नहीं था। इसी तरह बहु लोकप्रिय ‘मिशन मंगल’ में कहने को स्टार एक्ट्रेस विद्या बालन, तापसी पुन्नू, सोनाक्षी सिन्हा इत्यादि थी परंतु अक्षय के विराट फुटेज में ये सब छुप सी गई। इसी वर्ष कमाई में शीर्ष स्थान पर रही ‘वॉर’ में वाणी कपूर और अनुप्रिया गोयनका रिक्त स्थान की पूर्ति करती नजर आई। कमोबेश श्रद्धाकपुर (साहो), यामी गौतम, कीर्ति कुलकर्णी (उरी), मौनी रॉय (रोमियो अकबर वालटर), अदा शर्मा (कमांडो 3) के साथ भी यही अनुभव रहा।
इस साल कुछ ठेठ नारीवादी फिल्मे भी आई। उल्लेखनीय फिल्म थी ‘सांड की आँख’ ( भूमि पेढनेकर और तापसी पुन्नू ) साठ पार दो हरियाणवी महिलाओ के वास्तविक जीवन पर आधारित इस फिल्म ने अरसे बाद नायिका केंद्रित फिल्म के खाली स्पेस को भरने का प्रयास किया। इस फिल्म ने एक विवाद को भी हवा दी जब नीना गुप्ता ने खुलेआम तंज कस दिया कि वृद्ध महिला की भूमिका के लिए युवा अभिनेत्रियों को लिया गया जबकि अधेड़ अभिनेत्रियां मौजूद है! भूमि पेढनेकर की ही ‘सोनचिरैया’ चर्चा में आई।
साल के शुरुआत में ही विधु विनोद चोपड़ा की बेटी शैली चोपड़ा ने सनसनी फैला दी। उनकी फिल्म ‘एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा’ लेस्बियन रिश्तों की कहानी कह रही थी। कंगना रणावत की अभिनीत और निर्देशित ‘मणिकर्णिका’ ने भी दर्शक और पैसा बटोरते हुए राष्ट्रवाद की हवा चला दी। कृति शेनॉन को भले ही ‘पानीपत’ में करने को कुछ विशेष नहीं था फिर भी वे प्रभावी लगी।अधेड़ पत्नी और युवा प्रेमिका के बीच फंसे अजय देवगन ‘देदे प्यार दे’ में सामान्य लगे लेकिन उनकी दोनों नायिकाएँ हास्यास्पद रही। रानी मुखर्जी ‘मर्दानी 2’ बनकर लौटी। आलिया भट्ट ‘गली बॉय’, मीरा चोपड़ा, ऋचा चड्ढा ‘सेक्शन 375’ में अपनी भूमिका के साथ न्याय करती नजर आई। शीर्ष अभिनेत्रियों में करीना कपूर, दीपिका पादुकोण, प्रियंका चोपड़ा, कैटरीना कैफ आदि निडर महिलाओ का प्रतिनिधित्व करते नजर आई।
आने वाले वर्ष के लिए सबसे बड़ी शुभकामना यही हो सकती है कि नायिकाओ को भी बराबरी का मैदान मिले। फिलर , डेकोरेशन, आइटम सांग से ज्यादा कुछ करने की उनकी क्षमता का उपयोग हो। उनके किरदार वास्तविकता के नजदीक हो जिनकी अपनी अलग पहचान हो।
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(रजनीश जे जैन की शिक्षा दीक्षा जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय से हुई है. आजकल वे मध्य प्रदेश के शुजालपुर में रहते हैं और पत्र -पत्रिकाओं में विभिन्न मुद्दों पर अपनी महत्वपूर्ण और शोधपरक राय रखते रहते हैं.)